‘ए’ रक्त समूह वाले मरीज को अन्य लोगों के मुकाबले कोरोना संक्रमण होने का अधिक खतरा: अध्ययन

Joharlive Desk

नई दिल्ली। मनुष्य के शरीर में कोरोना संक्रमण और डीएनए के बीच गुप्त आनुवांशिकी संबंध को लेकर एक नया अध्ययन सामने आया है। वरिष्ठ आनुवांशिकी विज्ञानी इस बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए डीएनए खंगाल रहे हैं।

यूरोप के शोधकर्ताओं ने आनुवांशिकीय विविधताओं और कोरोना के बीच बनने वाले मजबूत संख्यात्मक संबंध को लेकर पहला अध्ययन किया है। इसमें सामने आया है कि जिन मरीजों का रक्त समूह ‘ए’ टाइप होता है, उनके अन्य लोगों के मुकाबले कोरोना की चपेट में आने की संभावना अधिक है। 

बताया गया है कि इस शोध से कोरोना की दवा बनाने में भी मदद मिल सकती है। इस अध्ययन में सहायक लेखक के तौर पर मॉलिक्युलर आनुवांशिक वैज्ञानिक एंड्रे फ्रेंक शामिल हैं। वे जर्मनी की काइल यूनिवर्सिटी से हैं।    

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1610 मरीजों के खून के नमूने लिए। इन मरीजों में वे मरीज शामिल थे, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी या फिर वे वेंटिलेटर पर जाने वाले थे। डॉ फ्रेंक और उनके साथियों ने सैंपल से डीएनए निकाला और जीनोटाइपिंग तकनीक से उसे स्कैन किया। 

इसके बाद उन्होंने मरीजों के सैंपल के जेनेटिक लेटर्स की भी जांच की। इसके अलावा, ऐसे रक्तदान करने वालों पर भी आनुवांशिक सर्वेक्षण किया गया, जिनमें कोरोना वायरस का कोई प्रमाण नहीं था। 

इसमें सामने आया है कि बढ़ती उम्र भी कोरोना संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकती है। लेकिन आनुवांशिकी विज्ञान से यहां नई आशा की किरण जागी है। डीएनए टेस्ट इस बीमारी के मरीज में यह पता लगाने के लिए कारगर हो सकता है कि पीड़ित को गंभीर और जरूरी उपचार की कितनी और कब जरूरत है। वहीं, इस बीमारी के प्रति असर दिखाने वाले कुछ जीन दवा बनाने में विशेषज्ञों को खास मदद कर सकते हैं।

शोध में सामने आया कि किसी का रक्त समूह ‘ए’ टाइप है और अगर वह कोविड-19 से संक्रमित होता है। ऐसी स्थिति में मरीज को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने की संभावना 50 फीसदी है। 

दरअसल, कोरोना एक प्रोटीन से जुड़ा होता है, जिसे एसीई2 कहते हैं। इसी के माध्यम से यह जानलेवा वायरस मानव शरीर में प्रवेश करता है। लेकिन घातक कोविड-19 के खतरे के प्रति फर्क बताने वाली अनुवांशिकी असंगति एससीई2 में उभर कर नहीं आई है।