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    Home»धर्म/ज्योतिष»वृद्धि योग एवं धुव्र योग में मनेगी जन्माष्टमी
    धर्म/ज्योतिष

    वृद्धि योग एवं धुव्र योग में मनेगी जन्माष्टमी

    Team JoharBy Team JoharAugust 19, 2022No Comments3 Mins Read
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    कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर विभिन्न पंचांगों में तिथियां अलग-अलग बताई जा रही हैं। इस बार जन्माष्टमी में भाद्रपद की अष्टमी 18 अगस्त और 19 अगस्त दो दिन पड़ रहा है। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 18 अगस्त 2022 दिन गुरुवार को रात्रि में हो रहा है। और 19 अगस्त तक रहेगा। जिसके कारण किस दिन व्रत रखा जाय संसय में है। शास्त्रों शास्त्रानुसार हिंदू धर्म में उदया तिथि को उत्तम माना गया है, इसलिए 19 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रखा जाएगा।

    18अगस्त को रात्री 12: 14 मिनेट के बाद अष्टमी आने से 19 को मनाया जाएगा कृष्णजन्माष्टमी। वही 19 रात्रि 1 : 06 मिनट तक अष्टमी है। वही 19 को सुबह रात्री 4: 58 मिनेट में रोहिणी नक्षत्र है।

    भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को हुआ था। कृष्ण जन्मोत्सव में रोहिणी नक्षत्र  सर्वमान्य होती है क्योंकि रोहिणी नक्षत्र में ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। लेकिन इस बार दो तिथियों में अष्टमी होने के बाद  भी रोहिणी नक्षत्र नहीं पड़ रहा है। रोहिणी नक्षत्र 20 अगस्त को प्रवेश कर रहा है।

    वृद्धि योग- 17 अगस्त को शाम 08 बजकर 56 मिनट से लेकर 18 अगस्त को शाम 08 बजकर 41 मिनट तक.
    धुव्र योग- 18 अगस्त को शाम 08 बजकर 41 मिनट से लेकर 19 अगस्त को शाम 08 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। इन दोनों योगों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस योग में किए गए कार्यों, पूजा, जप का परिणाम शुभ होता है।

    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है।

    इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है।

    जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है।

    जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा

    प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया की जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है ।इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं ।

    जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।

    ‘वायु पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ – ऐसा भी लिखा है, और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है । इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें, बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें ।

    जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है ।
    उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का और अपने गुरु मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती ।

    भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचानेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है।

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