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    Home»देश»शोध में खुलासा, आधुनिक खेती में नाइट्रस ऑक्साइड का अंधाधुंध इस्तेमाल जलवायु के लिए खतरा
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    शोध में खुलासा, आधुनिक खेती में नाइट्रस ऑक्साइड का अंधाधुंध इस्तेमाल जलवायु के लिए खतरा

    Team JoharBy Team JoharOctober 10, 2020No Comments2 Mins Read
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    Joharlive Desk

    नई दिल्ली। आधुनिक खेती के नाम पर रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग हमारे खाद्य उत्पादन को ही जलवायु के लिए खतरा बना रहा है। नेचर मैगजीन में छपे ऑबर्न विश्वविद्यालय के ताजा शोध ने बृहस्पतिवार को इसका खुलासा किया है। इसके मुताबिक नाइट्रोजन फर्टिलाइजर जलवायु के लिए बड़ा खतरा बन रहे हैं। अगर हम खेती में नाइट्रोजन का इस्तेमाल इस तरह से बड़े पैमाने पर करते रहे तो पेरिस समझौते के तहत जलवायु को लेकर तय लक्ष्य पूरा करना संभव नहीं हो पाएगा।

    यह शोध ऑबर्न यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फॉरेस्ट्री एंड वाइल्डलाइफ साइंसेज में एनड्रयू कार्नेजी फेलो और इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड ग्लोबल चेंज रिसर्च के निदेशक प्रोफेसर हैक्विन टीयान के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन का हिस्सा है। इस शोध को प्रोफेसर टीयान ने अंतरराष्ट्रीय संघ ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट और इंटनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के तहत 14 देशों के 48 अनुसंधान संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों के साथ मिलकर अंजाम दिया है। इस शोध में प्रभावकारी ग्रीनहाउस गैस नाइट्रस ऑक्साइड का अभी तक का सबसे विस्तृत और सारगर्भित आकलन किया गया है। 

    इस अध्ययन में पाया गया कि नाइट्रस ऑक्साइड जलवायु परिवर्तन को तेजी से प्रभावित कर रही है। इसका इस्तेमाल खेती में औद्योगिक स्तरों के मुकाबले 20 फीसदी तक बढ़ा है। इसके अलावा मानव गतिविधियों के कारण होने वाले उत्सर्जन में भी हाल के दशकों में खासी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 

    प्रोफेसर हैक्विन टीयान ने कहा कि खेती के साथ जानवरों के लिए भोजन भी दुनिया में नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को और बढ़ाएगी। अध्ययन के दौरान पाया गया कि वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में सबसे बड़ा योगदान पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का है।

    इसके अलावा चीन, भारत और अमेरिका में सिंथेटिक उर्वरकों के इस्तेमाल से यहां भी उत्सर्जन सबसे अधिक है, जबकि पशुधन से बनने वाली खाद से होने वाले उत्सर्जन में सबसे ज्यादा योगदान अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का है। उत्सर्जन की सबसे अधिक विकास दर उभरती अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से ब्राजील, चीन और भारत में पाई गई, जहां फसल उत्पादन और पशुधन की संख्या में वृद्धि हो रही है।

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