पटना : हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बिहार में नगर निकाय चुनाव पर लगी रोक

पटना : पटना हाइकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव को लेकर बड़ा फैसला दिया है. नगर निकाय चुनाव पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. पटना हाईकोर्ट ने राज्य में होने वाले नगर निकाय चुनाव पर आरक्षण के मसले को लेकर लगभग रोक लगा दी है. हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों पर हो रहे मतदान को रोकने को कहा है. कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछड़ों के आरक्षण के लिए तय ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी नहीं की है.

इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल सीटों का 50% की सीमा से ज्यादा नहीं हो. आज पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल और एस. कुमार की बेंच ने अपना फैसला दे दिया है. हाईकोर्ट की बेंच ने कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही जो आदेश दिया था, उसका बिहार में पालन नहीं किया गया. इस पूरे मामले में पटना हाईकोर्ट राज्य निर्वाचन आयोग पर नाराजगी जतायी है. हाईकोर्ट ने कहा है कि नगर निकाय चुनाव कराने की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग की है. राज्य निर्वाचन आयोग ने अपने संवैधानिक जिम्मेवारी का पालन नहीं किया है. आयोग इस मामले में पूरी तरह विफल रहा है.

इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर दायर याचिका पर 29 सितंबर को सुनवाई पूरी कर ली थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को इस मामले में जल्द सुनवाई कर फैसला सुनाने को कहा था. इसके बाद से ही यह कयास लगाये जा रहे थे कि आखिर हाईकोर्ट इस मामले में क्या फैसला देगा. पिछले दिनों हाईकोर्ट ने आयोग को इस बात के लिए भी स्वतंत्र कर दिया था कि चल रही चुनाव प्रक्रिया को रोका जाये या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में सुनाया था फैसला

स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण दिये जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में फैसला सुनाया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. सुप्रीम कोर्ट ने जो ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला बताया था उसमें उस राज्य में ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने को कहा था.