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    Home»धर्म/ज्योतिष»साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष 9 नवंबर को
    धर्म/ज्योतिष

    साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष 9 नवंबर को

    Team JoharBy Team JoharNovember 9, 2019Updated:November 9, 2019No Comments3 Mins Read
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    • साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए किया जाता हैशनि प्रदोष व्रत

    9 नवंबर को कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी और शनिवार यानी शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। प्रदोष पर्व पर पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को भगवान शिव की पूजा की जाती है। शनिवार को शिव पर्व होने से दिन और भी महत्वपूर्ण हो गया है।इस शुभ योग में भगवान शिव और शनि की पूजा एवं व्रत करने से हर इच्छा पूरी होती है। हर तरह के पाप भी खत्म हो जाते हैं। ये साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष है। इसके बाद अब मार्च 2020 में ऐसा संयोग बनेगा। 2020 में 5 बार शनि प्रदोष का योग बनेगा।

    प्रदोष व्रत और पूजा की विधि

    व्रती यानी व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में फिर से स्नान करके सफ़ेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। शाम को शिव पूजा के बाद पानी पी सकते हैं।

    शनि प्रदोष है खास

    शनिदेव के गुरू भगवान शिव हैं। इसलिए शनि संबंधी दोष दूर करने और शनिदेव की शांति के लिए शनि प्रदोष का व्रत किया जाता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिये शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। इस व्रत से शनि का प्रकोप, शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव कम हो जाता है। शनिवार को पड़ने वाला प्रदोष संपूर्ण धन-धान्य, समस्त दुखों से छुटकारा देने वाला होता है। इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करने पर जीवन में शनि से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। इसके अलावा शनि चालीसा और शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए।

    प्रदोष व्रत का महत्व

    संध्या का वह समय जब सूर्य अस्त होता है और रात्रि का आगमन होता हो उस समय को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की प्रदोष काल में शिव जी साक्षात् शिवलिंग में प्रकट होते हैं और इसीलिए इस समय शिव का स्मरण करके उनका पूजन किया जाए तो उत्तम फल मिलता है।
    प्रदोष व्रत करने से चंद्रमा के अशुभ असर और दोषों से छुटकारा मिलता है। यानी शरीर के चंद्र तत्व में सुधार होता है। चंद्रमा मन का स्वामी है इसलिए चंद्रमा संबंधी दोष दूर होने से मानसिक शांति और प्रसन्नता मिलती है। शरीर का ज्यादातर हिस्सा जल है इसलिए चंद्रमा के प्रभाव से शारीरिक स्वस्थता मिलती है। शनि प्रदोष पर प्रात:काल में भगवान शिवशंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, इसके बाद शनिदेव का पूजन करना चाहिए।

    आचार्य प्रणव मिश्रा
    आचार्यकुलम, अरगोड़ा, राँची
    9031249105

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