मिलिये झारखंड के 14 लोकसभा सीटों के 14 दलबदलुओं से

रांची : झारखंड के 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे 14 प्रत्याशी दलबदलू हैं. किसी ने एक बार, किसी ने दो बार, तो किसी ने तीन बार दल बदला है. इनमें से 3 प्रत्याशी ऐसे हैं जिन्होंने इस बार लोकसभा चुनाव का टिकट पाने के लिए चुनाव से ठीक पहले दल बदला है. इनमें हजारीबाग से कांग्रेस के प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल, सीता सोरेन, गीता कोड़ा शामिल हैं. ये लोग लोकसभा चुनाव में जीत गये तो अगले 5 साल उसी पार्टी में रहेंगे, लेकिन अगर हार गये फिर से ये नया ठिकाना तलाश करेंगे.

इन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले बदला दल

सीता सोरेन : शिबू सोरेन के बड़े बेटे स्व दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन ने पति के निधन के बाद राजनीति में कदम रखा. वो जामा विधानसभा सीट से लगातार 3 बार झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बनीं. सोरेन परिवार की बड़ी बहू ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले झामुमो छोड़ दिया और दिल्ली में जाकर भाजपा में शामिल हो गईं.

जेपी पटेल : झामुमो के कद्दावर नेता और शिबू सोरेन के पुराने साथी रहे जयप्रकाश भाई पटेल ने भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को धोखा दे दिया. 2009 और 2014 में वे मांडू विधानसभा सीट से झामुमो की टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गये. भाजपा की टिकट पर जीतकर विधायक बने. वे हजारीबाग लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने टिकट मनीष जायसवाल को दे दिया. तब सांसद बनने की महत्वाकांक्षा पाले जेपी दिल्ली में जाकर कांग्रेस में शामिल हो गये.

गीता कोड़ा : पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने जय भारत समानता पार्टी से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी. फिर वो कांग्रेस में शामिल हो गईं. 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने सिंहभूम से कांग्रेस की टिकट पर लड़ा. चुनाव जीतकर सांसद बन गईं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने रांची में आकर बाबूलाल मरांडी के सामने भाजपा का दामन थाम लिया.

पुराने दलबदलू

अन्नपूर्णा देवी : कोडरमा से भाजपा की प्रत्याशी अन्नपूर्णा देवी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजद छोड़कर भाजपा में आईं. अन्नपूर्णा 2000, 2005 और 2009 में राजद की टिकट पर चुनाव लड़कर कोडरमा से विधायक बनीं. 2014 और 2019 में भी वो चुनाव लड़ीं, लेकिन भाजपा की नीरा यादव से हार गईं. राजनीतिक करियर को बचाने के लिए वो राजद छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं. 2019 के बाद 2024 में भी भाजपा ने उन्हें टिकट दिया है.

ताला मरांडी : राजमहल लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी ताला मरांडी भी दलबदलू हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था तब वे नाराज होकर आजसू में शामिल हो गये थे. आजसू से चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. चुनाव हारने के बाद ताला फिर से पुराने घर की चाबी तलाशने लगे और आखिरकार बाबूलाल मरांडी ने उन्हें पार्टी में शामिल करा दिया.

सुखदेव भगत : लोहरदगा से कांग्रेस के उम्मीदवार सुखदेव भगत पुराने कांग्रेसी रहे हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये थे. भाजपा ने चुनाव लड़वाया, लेकिन चुनाव हार गये. हारने के बाद पुराने घर में वापस जाने के लिए हाथ-पैर मारने लगे. लंबे समय तक पुनर्वापसी का आवेदन पेंडिंग रहा. आखिरकार कांग्रेस ने अपना लिया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दे दिया.

प्रदीप यादव : गोड्डा लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप यादव 2 बार दल बदल चुके हैं. 2000 में वे पोड़ैयाहाट विधानसभा से भाजपा की टिकट पर विधायक बने थे. इसके बाद बाबूलाल मरांडी के साथ उनकी पार्टी झाविमो में चले गये. 2009, 2014 और 2019 का चुनाव वे झाविमो से जीते. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल भाजपा के साथ चले गये और प्रदीप ने कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया.

अर्जुन मुंडा : खूंटी लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी दलबदलू हैं. 1995 में वे खरसावां विधानसभा सीट से झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने थे. इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गये. लंबे समय से भाजपा में हैं.

ढुल्लू महतो : धनबाद लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी ढुल्लू महतो ने झाविमो के बाद भाजपा का दामन थामा है. ढुल्लू भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के करीबी हैं. ढुल्लू 2009 के विधानसभा चुनाव में बाघमारा से झाविमो की टिकट पर विधायक बने थे. फिर 2014 और 2019 में भाजपा से चुनाव जीते. अब पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतार दिया है.

विद्युतवरण महतो : जमशेदपुर लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी विद्युतवरण महतो ने झामुमो से राजनीति की शुरुआत की थी. झामुमो की टिकट पर जीतकर विधायक भी बने, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गये. 2014 और 2019 में भाजपा ने उन्हें जमशेदपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया. वे जीतकर विधायक बने. तीसरी बार भाजपा ने उनपर भरोसा जताया है.

समीर मोहंती : जमशेदपुर लोकसभा सीट से महागठबंधन के प्रत्याशी समीर मोहंती भी बड़े दलबदलू हैं. बहरागोड़ा विधानसभा सीट से 2005 में निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गये. 2009 में आजसू से चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. 2014 में झाविमो की टिकट पर किस्मत आजमाया, लेकिन फिर हारे. 2019 में झामुमो में शामिल हो गये. विधानसभा चुनाव लड़े और जीत गये. महागठबंधन ने इस बार जमशेदपुर में उनपर दांव खेला है.

संजय सेठ : रांची से भाजपा के प्रत्याशी संजय सेठ पुराने भाजपाई रहे हैं, लेकिन एक समय उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने अंगड़ाई ली और वे बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो में शामिल हो गये थे. बाद में फिर से भाजपा में वापस आ गये. 2019 में भाजपा ने उन्हें रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया, वे जीत गये. इस बार भी भाजपा ने उनपर भरोसा जताया है.

मनीष जायसवाल : हजारीबाग से भाजपा के प्रत्याशी मनीष जायसवाल ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो से राजनीतिक पारी शुरू की थी, बाद में वे भाजपा में शामिल हो गये. 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा की टिकट पर हजारीबाग से विधायक बने. अब पार्टी ने उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वा दिया है.

कालीचरण सिंह : चतरा से भाजपा के प्रत्याशी कालीचरण सिंह भी बाबूलाल मरांडी के खास थे. उनके साथ झाविमो में थे. बाद में भाजपा में आ गये. बाबूलाल मरांडी की कृपा से उन्हें भाजपा ने चतरा लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है.

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