शक्ति और साधना का महापर्व नवरात्र

Joharlive Desk

  • शारदीय नवरात्र की उपासना सिर्फ फलदायी ही नहीं कल्याणकारी, पापनाशिनी व मोक्षदायी होती है।

शारदीय नवरात्र का स्वर्णिम अवसर मां की उपासना का जगत में महत्वपूर्ण महापर्व है। नवरात्र साल में दो बार आते हैं। नवरात्र में नौ देवियों की पूजा का विशेष महत्व हैं यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। शारदीय नवरात्र का शुभारंभ आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 17 अक्टूबर से हो रहा है। शारदीय नवरात्र की उपासना सिर्फ फलदायी ही नहीं कल्याणकारी, पापनाशिनी व मोक्षदायी होती है। नवरात्र आगमन से पूर्व ही प्रकृति के कण-कण में मां की शक्ति का संचार हो जाता है। दशों द्वार खुल जाते हैं। इसकी अनुभूति सूक्ष्म रूप में, दृश्य-परिदृश्य रूप में उनकी छवि दृष्टिगोचर होने लगती है। सच्चे तत्वदर्शी भक्तों से यह गूढ़ रहस्य समझा व जाना जा सकता है। मां अपनी संतान के कल्याण के लिए हृदय खोलकर समस्त अनुदान, वरदान ऋद्धि-सिद्धि समय-समय पर अनवरत लुटाती आनंदित रहती है। लेकिन अनुदान, वरदान को धारण करने के लिए सुपात्र बनने की महती आवश्यकता व अनिवार्यतता को शास्त्रों के वर्णित किया गया है। कोई भी सच्चा भक्त अपनी पात्रता को सुविकसित कर लेता है, वह मां के अनुदानों-वरदानों को प्राप्त करने का असली अधिकारी स्वयं को सिद्ध करता है। साधना उपासना ही अनंत के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रमुख माध्यम है।  ऋषि प्रणीत विद्या को आत्मसात करके कोई भी अपने जीवन के भाग्य का द्वार खोल सकता है। मानव का सुविकसित स्वभाव होना ही जीवन के उत्थान हेतु जरूरी है। श्रेष्ठ लक्षण ही शक्ति धारण करने का आधार है। विघ्न, बाधा, परेशानी, संकट आये दिन पंक्तिबद्ध बनी रहती है। इससे उबरने के लिए मानव को शक्ति व ज्ञान की महती आवश्यकता समझी गई है। इसलिए नवरात्र में दुर्गा शक्ति की उपासना की जाती रही है। दुर्ग नामक असुर को मारने के कारण दुर्गा नाम पड़ा। दुर्गा प्रचंड शक्ति का मूल स्रोत है। जो सभी प्रकार की आसुरी शक्तियों और आसुरी विचारों से मनुष्य की रक्षा करती हैं। देवी  एक शेर या बाघ पर सवार दिखती हैं। इससे साहस और वीरता का संकेत मिलता है।  जो दुर्गा शक्ति का मूल तत्व है। नवदुर्गा यानी दुर्गा-शक्ति के नौ स्वरूप। जीवन में विघ्न-बाधाओं या दुर्बुद्धि का सामना करने पर देवी के नौ रूपों की विशेषताओं के स्मरण मात्र से मदद मिलती है।

मां दुर्गा के नौ रूप इस प्रकार हैं-

शैलपुत्री: नवदुर्गा में पहली देवी हैं शैलपुत्री। शैल यानी पत्थर। इस रूप की आराधना से मन पत्थर के समान मजबूत होता है। इससे प्रतिवद्घता आती है। जब भी आपका मन अस्थिर होता है, शैलपुत्री उसे केंद्रित और प्रतिबद्ध करने में सहायता करती हैं। शैल शिखर को भी कहा जाता है। शैलपुत्री हिमालय पर्वत शिखर की बेटी हैं। जब आप गहन अनुभूति में होते हैं, तब शक्ति के प्रवाह को अनुभव कर सकते हैं। यही शैलपुत्री का अदृष्ट अभिप्राय है।

ब्रह्मचारिणी: ब्रह्मचर्य से शक्ति आती है। ब्रह्म का अर्थ है- ईश्वर और चर्य का अर्थ है चलना। यहां ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ ईश्वर की ओर चलना। स्वयं को मात्र शरीर नहीं मानना चाहिए। हम अपनी विस्तृत प्रकृति को जानें और स्वयं को एक प्रकाश पुंज मानें। संसार में आप कुछ इस तरह चलें जैसे कि आप ही ब्रह्मांड हों। जितना आप अनंत चेतना में होंगे, उतनी ही कम चिंता और अपनी भौतिक काया के भार का अनुभव करेंगे। यही है ब्रह्मचर्य का मर्म। शक्ति के विशुद्ध रूप को दशार्ते हुए देवी को कुमारी के रूप में दिखाया गया है, जो स्वतंत्र  है। ये किसी के नियंत्रण में भी नहीं होती हैं।

चंद्रघंटा: नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। यह देवी घंटे के आकार का चंद्रमा धारण करती हैं। चंद्रमा का संबंध बुद्धि से है और घंटा सतर्कता का प्रतीक है। घंटे की ध्वनि दिमाग को वास्तविकता में ले आती है। जिस प्रकार चंद्रमा घटता-बढ़ता है, उसी प्रकार मस्तिष्क भी अस्थिर रहता है। चेतना संघटित होने से मस्तिष्क एक स्थान पर केंद्रित हो जाता है और इससे ऊर्जा में वृद्धि होती है। मस्तिष्क सतर्कता के साथ हमारे नियंत्रण में होता है। जब सतर्कता की गुणवता और दृढ़ता की वृद्धि होती है, तो मस्तिष्क आभूषण के समान हो जाता है। मस्तिष्क दिव्य मां का स्वरूप और उनकी अभिव्यक्ति भी है। इसका सार यही है कि चाहे सुख मिले या दुख, हमें हर परिस्थिति को समान रूप से देखना चाहिए। समग्रता के साथ सभी विचारों, भावनाओं और ध्वनियों को एक नाद में समाहित करें, जैसे घंटे की ध्वनि होती है।

कूष्मांडा: कूष्मांडा अर्थात कुम्हड़ा या सीताफल, जो शक्ति से भरपूर सब्जी है। एक सीताफल में अनेक बीज होते हैं, जिनसे और भी कई सीताफल उत्पन्न हो सकते हैं। यह ब्रह्मांड की सृजनात्मक शक्ति और शाश्वत प्रकृति का प्रतीक है। कूष्मांडा के रूप में देवी के भीतर समस्त सृजन समाया हुआ है। यह हमें उच्चतम प्राण प्रदान करती हैं, जो वृत्त के समान पूर्ण है। यह प्रकट और अप्रकट दोनों ही एक बहुत बड़ी गेंद या सीताफल के समान हैं, जो बताता है कि आपके पास यहां सभी प्रकार की विभिन्नताएं हैं। सूक्ष्मतम से विशाल तक। कूष्मांडा में कू यानी छोटा और ष् यानी ऊर्जा। यह ब्रह्मांड ऊर्जा से व्याप्त है सूक्ष्मतम से विशाल तक। एक छोटा-सा बीज पूरा फल बन जाता है और फिर फल बीज में बदल जाता है। हमारे भीतर की शक्ति भी सूक्ष्म से सूक्ष्मतम और विशाल से विशालतम हो जाती है। मां कूष्मांडा का यही संदेश है।

स्कंदमाता: स्कंद या प्रभु सुब्रमण्यम की मां स्कंदमाता कहलाती हैं। गोद में बालक स्कंद को लिए माता को शेर पर सवार दशार्या जाता है। इनका यह रूप साहस और करुणा का प्रतीक है। स्कंद अर्थात कुशल। ज्ञान की मदद से ही कुशल कार्य किए जा सकते हैं। श्री श्री रविशंकर बताते हैं कि कई बार हमारे पर ज्ञान तो होता है, लेकिन उसका कोई उद्देश्य नहीं होता। अपने कार्य सक अर्जित किए गए ज्ञान का एक उद्देश्य होता है। स्कंद भी हमारे जीवन में ज्ञान और क्रियाशीलता के एक साथ आने के भाव को दशार्ता है। यदि जीवन में कठिन परिस्थिति आती है, तो समस्या के समाधान के लिए हमें अपने ज्ञान का इस्तेमाल करना चाहिए। जब आप बुद्धिमता से कार्य करते हैं, तब स्कंद तत्व यानी कुशलता प्रकट होती है।

कात्यायनी: देवी मां का यह रूप देवताओं के क्रोध से उत्पन्न हुआ। सृष्टि में दिव्य और दानवी शक्तियां व्याप्ता हैं। इसी तरह क्रोध भी सकारात्मक और नकारात्मक हो सकता है। क्रोध को अवगुण न मानें। क्रोध का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। अच्छा क्रोध बुद्धिमता से संबंधित है और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से। अच्छा क्रोध व्यापक दृष्टिाबोध से आता है। यह अन्याय और अज्ञानता को मिटाने का संदेश देता है। अन्याय और नकारात्मकता को मिटाने के उद्देश्य से जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह देवी कात्यायनी का प्रतीक है।

कालरात्रि: काल अर्थात समय। सृष्टि में घटित होने वाली सभी घटनाओं का साक्षी है समय। रात्रि अर्थात् गहन विश्राम या पूर्ण विश्राम। तन, मन और आत्मा के स्तर पर आराम। बिना विश्राम पाए आप दीप्तिमान कैसे होंगे? कालरात्रि गहनतम विश्राम के उस स्तर का प्रतीक है, जिससे आप जोश पा सकें। ये देवी आपको ज्ञान और तटस्थता प्रदान करती हैं।

महागौरी: देवी के इस रूप में ज्ञान, गमन, प्राप्ति और मोक्ष का संदेश छिपा है। महागौरी हमें विवेक प्रदान करती हैं, जो जीवन सुधा के समान है। निष्कपटता से शुद्धता प्रकट होती है। महागौरी प्रतिभा और निष्कपटता का मिश्रण हैं। ये परमानंद और मोक्ष प्रदान करती हैं।

सिद्धिदात्री: सिद्धिदात्री अर्थात सिद्धि प्रदान करने वाली। नौवें और अंतिम दिन मां दुर्गा के इसी स्वरूप की पूजा होती है। सिद्धि का अर्थ है सफलता। इनकी साधना करने वाले के लिए कुछ भी अगम्य नहीं रह जाता है। वह जीवन में सफलता प्राप्त करता है। पूर्ण विजय प्रदान करती हैं मां सिद्धिदात्री।