New Delhi : देशभर में बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जारी बहस के बाद अब शीर्ष अदालत की तीन जजों की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और संबंधित एजेंसियों से आठ हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
यह मामला उस समय चर्चा में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस पर स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लिया और केस का शीर्षक रखा – “आवारा कुत्तों से परेशान शहर, बच्चों को चुकानी पड़ रही कीमत”। इस याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया शामिल थे।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में एक अन्य पीठ जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन शामिल थे, ने दिल्ली-एनसीआर के सभी नगर निकायों को निर्देश दिया था कि वे आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़ें और आश्रय स्थलों में शिफ्ट करें। कोर्ट ने जन सुरक्षा और रेबीज के मामलों को “गंभीर” बताते हुए कहा था कि बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।

सोशल मीडिया पर उठा विरोध
इस आदेश के बाद पशु अधिकार कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों और मशहूर हस्तियों ने कोर्ट के निर्देश पर नाराजगी जताई। उनका कहना है कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम जैसे शहरों में पुनर्वास के लिए बुनियादी ढांचे की भारी कमी है और यह कदम कुत्तों के प्रति अमानवीय है। साथ ही चेतावनी दी गई कि अगर एक इलाका खाली किया गया, तो वहां नए कुत्ते आ सकते हैं।
समाधान क्या है?
कई विशेषज्ञों और पशु प्रेमियों का मानना है कि ABC (Animal Birth Control) नियमों को ठीक से लागू करना ही इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है।
मुख्य न्यायाधीश ने क्या कहा?
इससे पहले मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करेगा। एक वकील द्वारा नसबंदी और टीकाकरण की मांग पर उन्होंने यह आश्वासन दिया था।
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