चंद्रप्रकाश चौधरी की दोबारा चुनावी दावेदारी एक रणनीतिक कदम, राजनीतिक कौशल की है परीक्षा

रांची : आगामी लोकसभा चुनाव में गिरिडीह सीट से आजसू नेता चंद्रप्रकाश चौधरी के दोबारा चुनाव लड़ने की खबर से झारखंड का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. राज्य में आजसू-भाजपा गठबंधन भी दिलचस्पी का विषय रहा है, दोनों पार्टियां एक मजबूत ताकत बनने के लिए एक साथ आ रही हैं. लेकिन तमाम सुगबुगाहट के बीच गिरिडीह में बीजेपी और आजसू कार्यकर्ताओं के बीच दूरी की भी खबर आई, लोकसभा चुनाव में चंद्रप्रकाश चौधरी की सफलता काफी हद तक तीन महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करेगी. आजसू के मुख्य मतदाताओं, भाजपा और संघ परिवार से उन्हें मिलने वाला समर्थन. झारखंड में आजसू और बीजेपी के बीच गठबंधन कोई नई बात नहीं है. दोनों पार्टियां लंबे समय से एक साथ काम कर रही हैं और दोनों एक मजबूत रिश्ता बना चुकी हैं. समझौते के तहत झारखंड की 14 सीटों में से आजसू को गिरिडीह की एक लोकसभा सीट दी गई है, जबकि बाकी 13 सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ेगी. इस साझेदारी को राज्य में अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दोनों पक्षों द्वारा एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है.

चंद्रप्रकाश चौधरी के राजनीतिक कौशल की है परीक्षा

चंद्रप्रकाश चौधरी, जो वर्तमान में आजसू से सांसद हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं कि झारखंड में उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत हो. माना जा सकता है कि गिरिडीह सीट से उनका दोबारा चुना जाना अपने क्षेत्र के प्रति उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का सबूत है, लेकिन अंदर की कहानी कुछ और भी हो सकती है. हालांकि, गिरिडीह में भाजपा और आजसू कार्यकर्ताओं के बीच तनाव की हालिया रिपोर्ट ने चौधरी के चुनाव जीतने की संभावनाओं को लेकर चिंता बढ़ा दी थी. गिरिडीह में बीजेपी और आजसू कार्यकर्ताओं के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा था. इस तनाव का मूल कारण गठबंधन के भीतर सत्ता की गतिशीलता में निहित है. जहां बीजेपी का कद ऊंचा है, वहीं आजसू को जूनियर सदस्य माना जाता है.

कार्यकर्ताओं व संघ परिवार का समर्थन पर मिलेगी सफलता

सूत्रों के मुताबिक, गिरिडीह से आजसू के मौजूदा सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने मामले को सुलझाने और गठबंधन के भीतर शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है. वह पिछले कुछ महीनों से क्षेत्र में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के लिए काम कर रहे हैं. चौधरी के प्रयास सराहनीय रहे हैं और वह तनाव को कुछ हद तक कम करने में सफल रहे हैं. हालांकि, इस प्रयास में उनकी सफलता अंततः भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलने वाले समर्थन पर भी निर्भर करेगी. एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जो चौधरी की दोबारा चुनावी दावेदारी में अहम भूमिका निभाएगा, वह है संघ परिवार का समर्थन. संघ परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से जुड़े संगठनों के लिए एक व्यापक शब्द है, जिसमें भाजपा भी शामिल है. भाजपा के बैनर तले खड़े किसी भी उम्मीदवार के लिए उनका समर्थन महत्वपूर्ण है और चौधरी कोई अपवाद नहीं हैं.

राजनीतिक कौशल की होगी परीक्षा

आजसू भले ही बीजेपी की सहयोगी हो, लेकिन उसे झारखंड में अपनी स्थिति सुरक्षित करने के लिए अभी भी संघ परिवार के समर्थन की जरूरत है. चंद्रप्रकाश चौधरी अपने पुन: चुनाव अभियान के लिए सक्रिय रूप से संघ परिवार का समर्थन मांग रहे हैं. उन्होंने आरएसएस और उसके सहयोगियों द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लिया है और संघ परिवार की विचारधारा के साथ अपनी पार्टी के जुड़ाव पर भी प्रकाश डाला है. हालांकि, यह देखना होगा कि आगामी चुनाव में उन्हें संघ परिवार से कितना समर्थन मिलता है. अंत में, गिरिडीह सीट पर चंद्रप्रकाश चौधरी की दोबारा चुनावी दावेदारी चुनौतियों से खाली नहीं है. गिरिडीह में बीजेपी और आजसू कार्यकर्ताओं के बीच तनाव और संघ परिवार का समर्थन उनकी सफलता तय करने में अहम भूमिका निभाएगा. एक अनुभवी राजनेता के रूप में चौधरी गठबंधन के भीतर शांति बनाए रखने और संघ परिवार से समर्थन हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि, यह तो समय ही बताएगा कि उनकी कोशिश सफल होगी और गिरिडीह में आजसू सांसद के रूप में उनकी कुर्सी सुरक्षित रहेगी. आगामी चुनाव निस्संदेह उनके नेतृत्व और राजनीतिक कौशल की परीक्षा होंगे.

इसे भी पढ़ें: गोड्डा लोकसभा चुनाव : चुनावी रण में कौन देगा निशिकांत दुबे को टक्कर, कितना आसान होगा फतह करना?