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    Home»झारखंड»रघुवर दास : टाटा स्टील की नौकरी छोड़ राजनीति में आये, बने मुख्यमंत्री और अब ओडिशा के गवर्नर
    झारखंड

    रघुवर दास : टाटा स्टील की नौकरी छोड़ राजनीति में आये, बने मुख्यमंत्री और अब ओडिशा के गवर्नर

    Team JoharBy Team JoharOctober 19, 2023Updated:October 19, 2023No Comments4 Mins Read
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    रांची : झारखंड को पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री मिला. झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में पहली बार किसी एक गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ था. इस शानदार जीत ने झारखंड की राजनीति को एक नई दिशा दी. 2014 में जब अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब रघुवर दास को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. रघुवर दास कभी टाटा स्टील में मामूली कर्मचारी हुआ करते थे. उनका सीएम बनने का सफर रोचक और प्रेरणादायक रहा है. रघुवर दास चार दशकों से झारखंड की राजनीति में सक्रिय रहे हैं. राज्य गठन के बाद वह झारखंड के पहले श्रम मंत्री बने. फिर भवन निर्माण मंत्री बने. मार्च 2005 में वह राज्य के वित्त मंत्री रहे. भाजपा-झामुमो गंठबंधन सरकार में भी वह उपमुख्यमंत्री रहे. वह पांच साल का कार्यकाल पूरा करनेवाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. रघुवर दास झारखंड भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वर्तमान में वह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे थे.

    परिचय

    रघुवर दास का जन्म 3 मई, 1955 को हुआ था.

    रघुवर दास टाटा स्टील की नौकरी छोड़ राजनीति में सक्रिय हुए थे.

    वर्ष 1977 में वे जनता पार्टी के सदस्य बने.

    1980 में भाजपा की स्थापना के साथ ही वह सक्रिय राजनीति में आये.

    जमशेदपुर पूर्वी से पहली बार वर्ष 1995 में विधायक बने थे.

    इस सीट से वह 2014 तक के विधानसभा चुनाव तक लगातार पांच टर्म विधायक रहे.

    रघुवर दास मूलतः छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के बोईरडीह के रहने वाले हैं. इनके पिता चमन दास रोजगार के लिए जमशेदपुर शिफ्ट हो गए थे. रघुवर दास का जन्म 3 मई 1955 को जमशेदपुर में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा जमशेदपुर में हुई थी. लॉ की पढ़ाई के बाद रघुवर दास टाटा स्टील के रोलिंग मिल में मजदूरी करने लगे. इसी दौरान रघुवर ने मजदूरों के हक में लड़ना शुरू किया. उन्होंने टाटा स्टील के कब्जे में 86 बस्तियों का मालिकाना हक मजदूरों को दिलाया. धीरे-धीरे उनकी रूचि राजनीति में बढ़ने लगी. रघुवर दास जेपी आंदोलन के दौरान 1975 के आपातकाल के समय जेल भी गए.

    वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने

    रघुवर 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने और 1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ सक्रिय राजनीति में आ गए. इसी साल रघुवर दास बीजेपी प्रत्याशी दीनानाथ पांडे के लिए पोलिंग एजेंट बने, जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें बूथ मैनेजमेंट की जिम्मेदारी बखूबी निभायी. पार्टी में सक्रियता को देख उन्हें जिला महामंत्री बना दिया गया. भाजपा के विचारक गोविंदाचार्य की नजर रघुवर पर गई तो 1995 में जमशेदपुर (पूर्वी) सीट का टिकट मिल गया. उन्होंने पहले चुनाव में ही भारी मतों से जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने इस सीट से 2000, 2005, 2009 और 2014 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की.

    2014 में  हारे  चुनाव

    2014 में मुख्यमंत्री बने रघुवर दास की 2019 तक एक कद्दावर नेता बन चुके थे. पार्टी के अंदर ही कई नेताओं ने इनका विरोध शुरू कर दिया था. इन्हीं में से एक हैं सरयू राय. सरयू राय उनकी सरकार में मंत्री रहे हैं. मंत्री रहते हुए उन्हेंने कई मौकों पर इनका विरोध किया. 2019 के विधानसभा चुनाव में सरयू राय को बीजेपी की ओर से टिकट नहीं मिल पाया. सरयू राय ने रघुवर दास के खिलाफ ही जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ा. संभवत: यह पहला मौका था जब एक ही सीट से मुख्यमंत्री और मंत्री दोनों चुनाव लड़ रहे थे. यह चुनाव बेहद रोचक हो गया था. इस रोचक मुकाबले में रघुवर दास को हार का मुंह देखना पड़ा. 2019 में चुनाव हारने के कुछ महीनों बाद बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया.

    इसे भी पढ़ें: राज्यपाल बनने के बाद बोले रघुवर-पार्टी ने मजदूर के बेटे को संवैधानिक पद का सौंपा दायित्व

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