New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की पीठ ने राजद नेता मनोज झा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों को सुना। सिब्बल ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने एक निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोगों को मृत घोषित किया, जो बाद में जीवित पाए गए, जबकि एक अन्य मामले में जीवित लोगों को मृत दिखाया गया।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस तरह के अभियान में कुछ त्रुटियां स्वाभाविक हैं। उन्होंने बताया कि मसौदा सूची में गलतियां सुधारी जा सकती हैं, क्योंकि यह केवल प्रारंभिक सूची है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहे, जिसमें मतदाताओं की संख्या, मृतकों की संख्या और अन्य प्रासंगिक विवरण शामिल हों।
मसौदा सूची 1 अगस्त को प्रकाशित, अंतिम सूची 30 सितंबर को
इससे पहले 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को संवैधानिक प्राधिकारी करार देते हुए कहा था कि यदि बिहार में मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए, तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा। मसौदा सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हुई थी और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया लाखों योग्य मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है।
किन-किन ने दायर की याचिका?
राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, शरद पवार गुट की सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा के सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से चुनाव आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती दी है। इसके अलावा, पीयूसीएल, एनजीओ एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव सहित कई नागरिक समाज संगठनों ने भी शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
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