New Delhi : सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए करीब 65 लाख मतदाताओं के मामले में चुनाव आयोग को कड़ा निर्देश दिया। कोर्ट ने आयोग से कहा कि वह 9 अगस्त तक हटाए गए प्रत्येक मतदाता की विस्तृत जानकारी पेश करे। यह जानकारी न केवल राजनीतिक दलों, बल्कि याचिकाकर्ता एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) के साथ भी साझा की जाए। मामले की अगली सुनवाई 12-13 अगस्त को होगी।
क्या है मामला :
चुनाव आयोग ने बिहार में 24 जून को ‘विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान’ (SIR) शुरू किया था। इसके तहत 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में 7.24 करोड़ मतदाता शामिल थे, लेकिन इसमें 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए। आयोग का दावा है कि ये नाम मृत्यु, स्थायी स्थानांतरण या दोहरे पंजीकरण के कारण हटाए गए। आंकड़ों के मुताबिक, 22.34 लाख नाम मृत्यु, 36.28 लाख स्थायी स्थानांतरण और 7.01 लाख दोहरे पंजीकरण के कारण हटाए गए।
कोर्ट में क्या हुआ :
जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुयान और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हमें हर हटाए गए मतदाता की जानकारी चाहिए। यह स्पष्ट करें कि किस आधार पर नाम हटाए गए।” ADR की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची तो दी गई, लेकिन यह नहीं बताया गया कि कौन मृत है, कौन शिफ्ट हुआ, या किसका नाम गलत तरीके से हटाया गया। कोर्ट ने आयोग को 9 अगस्त तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।
ADR की मांग
ADR ने अपनी याचिका में मांग की है कि हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की पूरी सूची सार्वजनिक की जाए। साथ ही, प्रत्येक नाम के साथ हटाने का कारण मृत्यु, स्थानांतरण या अन्य स्पष्ट किया जाए।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि वह मतदाता सूची को शुद्ध करने का काम कर रहा है। आयोग का उद्देश्य अपात्र व्यक्तियों को हटाकर केवल पात्र मतदाताओं को सूची में शामिल करना है।
सुप्रीम कोर्ट की पहले की टिप्पणी
29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए गए, तो वह तत्काल हस्तक्षेप करेगा। कोर्ट ने आधार कार्ड और वोटर आईडी को गंभीरता से मान्य दस्तावेज मानने और नाम हटाने के बजाय जोड़ने की प्रक्रिया पर जोर देने की बात कही थी।
आगे क्या :
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। 9 अगस्त को आयोग के जवाब के बाद 12-13 अगस्त को होने वाली सुनवाई में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा होगी। यह मामला बिहार में मतदाता सूची की शुद्धता और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है।
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