Patna : बिहार में आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक तापमान तेजी से बढ़ रहा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अब आरक्षण के मुद्दे को केंद्र में रखते हुए CM नीतीश कुमार को खुली चुनौती दे दी है। तेजस्वी ने CM को एक पत्र लिखते हुए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने और नई आरक्षण नीति पारित करने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार इस दिशा में कदम नहीं उठाती है, तो वह आंदोलन छेड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।
तेजस्वी ने लिखा…
तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पत्र साझा करते हुए लिखा, “महागठबंधन सरकार में बढ़ाई गई 65% आरक्षण सीमा को अपनी ही सरकार में संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में घोर विफल रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को पत्र लिखा है। बाक़ी हमने जो करना है वो हम करेंगे।”
महागठबंधन सरकार में बढ़ाई गई 65% आरक्षण सीमा को अपनी ही सरकार में संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में घोर विफल रहे मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी को पत्र लिखा है।
बाक़ी हमने जो करना है वो हम करेंगे। दलित-आदिवासी, पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्गों का वोट लेकर RSS-BJP की पालकी ढो… pic.twitter.com/xD0a9oWQID
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 5, 2025
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि CM नीतीश कुमार ने पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्गों का साथ लेकर भाजपा और RSS की ‘पालकी’ ढोने का काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की न्यायप्रिय जनता इन अवसरवादी नेताओं को सही जवाब देगी।
क्या है मामला?
तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में याद दिलाया कि अगस्त 2022 में महागठबंधन सरकार के गठन के बाद 2023 में जाति आधारित जनगणना कराई गई थी। इस जनगणना के आधार पर पिछड़े, अति पिछड़े, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की सीमा 65% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान करते हुए कुल 75% आरक्षण की नीति अपनाई गई थी।
हालांकि, पटना उच्च न्यायालय ने इस कानून को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आरक्षण सीमा बढ़ाने से पहले पर्याप्त सामाजिक अध्ययन नहीं किया गया। तेजस्वी ने इसे अनुचित बताते हुए कहा कि तमिलनाडु में भी 69% आरक्षण लागू है और वह संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल है।
तेजस्वी की मांगें :
- सर्वदलीय समिति का गठन कर सामाजिक अध्ययन कराया जाए
- एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए
- बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर नया आरक्षण विधेयक पारित किया जाए
- 85% तक आरक्षण का प्रावधान किया जाए
- इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की जाए
- विधेयक को तीन सप्ताह के अंदर केंद्र सरकार को भेजा जाए
तेजस्वी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इन मांगों पर कार्रवाई नहीं होती, तो वह राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।
आगे की राह :
बिहार की राजनीति में आरक्षण लंबे समय से एक संवेदनशील और प्रभावशाली मुद्दा रहा है। तेजस्वी यादव की यह रणनीति न केवल सामाजिक न्याय की राजनीति को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, बल्कि नीतीश कुमार पर दबाव बनाने की भी एक स्पष्ट कोशिश है। देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री इस पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या बिहार में एक बार फिर आरक्षण को लेकर राजनीतिक टकराव गहराता है।
Also Read : DGP अनुराग गुप्ता की पत्नी के सर्टिफिकेट को फर्जी बताने वाली PIL खारिज