राज्यसभा में नागरिकता विधेयक पर संसद की मुहर, मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं: अमित शाह

Joharlive Desk

नयी दिल्ली । केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज राज्यसभा को आश्वस्त किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक में संविधान का किसी भी तरह से उल्लंघन नहीं किया गया है और यह अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिमों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता क्योंकि यह नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला विधेयक है।
गृह मंत्री ने नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सदस्यों को यह आश्वासन दिया। इसके बाद सदन ने विधेयक को 105 के मुकाबले 125 मतों से पारित कर दिया। इसके साथ ही इस पर संसद की मुहर लग गयी क्योंकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
इससे पहले विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के के के रागेश के प्रस्ताव को सदन ने 99 के मुकाबले 124 मतों से खारिज कर दिया। एक सदस्य ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। साथ ही सदन ने कांग्रेस के हुसैन दलवाई, भाकपा के विनय विश्वम , माकपा के ई करीम और राजद के मनोज झा के विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के प्रस्तावों को ध्वनिमत से खारिज कर दिया। शिव सेना के सदस्य मतदान से पहले ही सदन से बहिर्गमन कर गये थे।
सदन ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक आे ब्रायन तथा अन्य विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया।
इससे पहले विधेयक पर छह घंटे से भी अधिक समय तक हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि मोदी सरकार ने इस विधेयक के जरिये तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना झेलने के बाद यहां शरणार्थी का जीवन गुजार रहे अवैध प्रवासियों को उनका अधिकार और सम्मान देने का काम किया है। विधेयक में इन तीनों देशों में रहने वाले हिन्दू, ईसाई, सिख, पारसी,जैन और बौद्ध अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक इन लोगों के लिए नया सवेरा लेकर आयेगा और यह क्षण इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से संविधान सम्मत है और इसमें किसी तरह का उल्लंघन नहीं किया गया है। गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि देश के अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिमों को जरा भी चिंता करने या डरने की जरूरत नहीं है। यह उन्हें किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता क्योंकि यह नागरिकता देने वाला विधेयक है न कि लेने वाला। उन्होंने कहा कि यह विधेयक 1950 के नेहरू- लियाकत समझौते में किये गये वादों को पूरा करता है जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश तीनों ने ही इस समझौते के वादों को पूरा नहीं किया है।

श्री शाह ने कहा कि यदि देश का बंटवारा नहीं होता तो यह विधेयक लाने की जरूरत नहीं पड़ती। बंटवारे के कारण उत्पन्न परिस्थितियों के समाधान के लिए यह विधेयक लाया गया है। यदि यह विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होता तो यह विधेयक लाने की जरूरत नहीं पड़ती। मुसलमानों को इस विधेयक से बाहर रखे जाने पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे इन तीनों देशों में बहुमत में हैं और उन के खिलाफ धर्म के आधार पर प्रताड़ना नहीं हो रही है।
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इन तीनों देशों की सीमा भौगोलिक रूप से भारत से जुड़ी है इसीलिए विधेयक में इनमें रहने वाले अल्पसंख्यकों को यह सुविधा दी जा रही है। अभी इन तीनों देशों में ही यह समस्या ज्यादा मुखर रही है इसलिए इसका समाधान किया जा रहा है। इससे पहले भी श्रीलंका और युगांडा से आये शरणार्थियों को उस समय की समस्या के अनुसार नागरिकता दी गयी थी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने अब तक 566 मुसलमानों को देश की नागरिकता प्रदान की है और मुसलमान भविष्य में भी इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। इस विधेयक से बहुत कम लोगों को फायदा होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी शरणार्थी डरे हुए हैं और जब इस विधेयक के प्रावधान लागू होंगे तो यह संख्या लाखों में पहुंच जायेगी।
उन्होंने कहा कि अब विधेयक का विरोध करने वाली कांग्रेस अपनी कार्यसमिति की बैठक में पाकिस्तान में रहने वाले गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रस्ताव पारित कर चुकी है। महात्मा गांधी ने भी 26 सितम्बर 1947 को कहा था कि पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू और सिख यदि वहां नहीं रहना चाहते तो भारत सरकार को उन्हें शरण देनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि देश के विभाजन का कारण जिन्ना थे और कांग्रेस ने धर्म के आधार पर किये गये इस विभाजन को स्वीकार कर बड़ी भूल की थी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से किसी भी धर्म या समुदाय की भावना आहत नहीं होती।
इससे पहले विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि सरकार मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए समय समय पर धारा 370 , जीएसटी, तीन तलाक , एनआरसी और कैब जैसे मु्द्दे उछालती रहती है। उन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों में विधेयक को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों का मुद्दा उठाया।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्षी सदस्यों की इस आशंका को निराधार बताया कि विधेयक को कानून मंत्रालय की कसौटियों पर कसा नहीं गया है। उन्होंने कहा कि कानून मंत्रालय ने इसे मंजूरी दी है और यह न्यायालय में भी सभी कसौटियों पर खरा उतरेगा।