
Johar Live Desk : अश्विन मास की अमावस्या तिथि है, जिसे महालया अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, खासकर पश्चिम बंगाल में, जहां इसे दुर्गा पूजा के प्रारंभ और मां दुर्गा के धरती पर आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष का समापन होता है और लोग अपने पितरों को अंतिम श्राद्ध और तर्पण कर विदा करते हैं। इसके बाद मां दुर्गा के स्वागत की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
महालया क्या है?
महालया अमावस्या अश्विन मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस दिन सुबह पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण की विधि पूरी की जाती है। इसके बाद मां दुर्गा के धरती पर आगमन की तैयारियां शुरू होती हैं। ‘महालया’ शब्द संस्कृत के ‘महा’ (महान) और ‘आलय’ (निवास) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘देवी का महान निवास’। मान्यता है कि इस दिन मां पार्वती कैलाश पर्वत से अपने मायके, यानी धरती, के लिए प्रस्थान करती हैं।
महालया का महत्व
महालया को मां दुर्गा के धरती पर आगमन और शक्ति की उपासना के लिए विशेष दिन माना जाता है। इस दिन भक्त मां दुर्गा का आह्वान करते हैं। पश्चिम बंगाल में इस दिन का उत्साह चरम पर होता है। सुबह पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, जबकि शाम को मां दुर्गा की पूजा होती है। इस दिन महिषासुर मर्दिनी का पाठ किया जाता है। मूर्तिकार इस दिन मां दुर्गा की मूर्तियों पर रंग चढ़ाते हैं और उनकी आंखें गढ़कर ‘चक्षुदान’ करते हैं, जिससे मूर्ति में प्राण फूंके जाते हैं। इस प्रक्रिया से मां का मृण्मयी (मिट्टी का) रूप चिन्मयी (दिव्य) रूप में बदल जाता है।
नवरात्रि से संबंध
महालया के बाद ही नवरात्रि शुरू होती है, जो इस साल 22 सितंबर 2025 से प्रारंभ होगी। महालया परिवर्तन का प्रतीक है, जो दुख के बाद सुख, मौसम में बदलाव और शुभ समय की शुरुआत का संकेत देता है। मान्यता है कि अगर महालया पर मां दुर्गा धरती पर नहीं आतीं, तो नवरात्रि के नौ दिनों तक उनके विभिन्न रूपों की पूजा संभव नहीं होती।
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