लोकसभा चुनाव : हज़ारीबाग़ में बीजेपी के जयसवाल बनाम कांग्रेस के पटेल, राजनीतिक संघर्ष में विचारधारा की लड़ाई

स्वामी दिव्यज्ञान

हज़ारीबाग़ : हज़ारीबाग़ के पांच विधानसभा क्षेत्र (बरही, बड़कागांव, हज़ारीबाग़ सदर, मांडू और रामगढ़) में दो पर एनडीए के विधायक हैं, जबकि बचे तीन पर इंडी गठबंधन के विधायक हैं. लोकसभा चुनावों में  सभी की निगाहें इस निर्वाचन क्षेत्र पर हैं क्योंकि यह मौजूदा उद्योगपति हजारीबाग सदर विधायक मनीष जायसवाल और पूर्व भाजपा प्रमुख और मांडू विधायक जयप्रकाश भाई पटेल का घर है, जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं. दोनों नेता हज़ारीबाग़ लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के टिकट के दावेदार थे, जिससे आगामी चुनाव और भी दिलचस्प हो गया है. आइए इस निर्वाचन क्षेत्र की गतिशीलता पर गौर करें.

नजर डालते है उम्मीदवारों के गुण और दोष के बारें में

बात की जाए मनीष जायसवाल की तो सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति और बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है. जाति के मुद्दे पर नजर डालें तो जयप्रकाश भाई पटेल की जाति के लोगों की संख्या मनीष जयसवाल से ज्यादा है. क्योंकि मनीष जयासावल के सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों, आरएसएस पदाधिकारियों और स्थानीय मीडिया के साथ बेहतर संबंध हैं और उनका निवास हज़ारीबाग़ शहर के केंद्र में है, जिससे उन्हें फायदा मिलता है. जबकि जय प्रकाश भाई पटेल का निवास एक उपनगरीय क्षेत्र में स्थित है, कोयला श्रमिक संघ और दूरदराज के गांवों के निवासियों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं. दिलचस्प बात यह है कि जयप्रकाश भाई पटेल के पिता टेकलाल महतो भी हज़ारीबाग़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे.

मनीष जयसवाल कोविड-19 काल में आम लोगों के लिए  रहे सुलभ

मनीष जयसवाल ने कोविड-19 काल में हज़ारीबाग़ के आम लोगों के लिए सुलभ रहे. उन्होंने इस अवधि के दौरान जिले में जान गंवाने वाले चार पत्रकारों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की. विधानसभा छोड़ने के बाद भी, जयसवाल ने भाजपा कार्यकर्ताओं का समर्थन करना जारी रखा और उनके बारे में सबसे उल्लेखनीय गुणों में से एक यह है कि वे जिस किसी से भी मिलते हैं, उससे तुरंत जुड़ने की उनकी क्षमता है.

ग्रामीण इलाकों के लोगों के साथ खड़े रहे जयप्रकाश भाई पटेल

जयप्रकाश भाई पटेल भी लोगों के लिए सुलभ हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए. उन्होंने भी कोविड-19 के समय में अपने विधानसभा के लोगों को काफी सहयोग प्रदान किया. वह एक क्रांतिकारी परिवार से आते हैं और अपने पिता के साथ अलग झारखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय थे. एक बार कोई विचार उसके मन में घर कर जाए तो उसे त्यागना उसके लिए कठिन होता है.

2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान, उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से वादा किया था कि वह झामुमो छोड़ देंगे और भाजपा में शामिल हो जाएंगे. बावजूद इसके कि सभी सर्वेक्षणों में राज्य में झामुमो की जीत का संकेत दिया गया था. स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद उन्होंने मांडू विधानसभा चुनाव लड़ा और चुनाव जीते.

भुनेश्वर मेहता चुनाव को बना सकते हैं त्रिकोणीय

प्रारंभिक गणना से पता चलता है कि कांग्रेस के जय प्रकाश पटेल और भाजपा के मनीष जयसवाल के बीच कड़ी टक्कर है. हालांकि, एनडीए थिंक टैंक के प्रयासों के लिए धनबाद, तीसरे उम्मीदवार, सीपीआई (एम) के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, जो 2004 में संसद सदस्य थे, 2024 में हज़ारीबाग़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं (जिन्हें झारखंड का स्टालिन कहा जाता है). हालांकि सीपीआई (एम) इंडी गठबंधन का हिस्सा है एवं इंडी गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के पास है. जिससे लड़ाई त्रिकोणीय हो जाएगी और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के लिए खतरा पैदा हो सकता है. क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को 65% से ज्यादा वोट मिले थे. गौरतलब है कि भुवनेश्वर प्रसाद मेहता कोइरी समुदाय से आते हैं. जिसकी हज़ारीबाग़ में अच्छी खासी मतदाता आबादी है. हज़ारीबाग़ का एक और उल्लेखनीय पहलू यह है कि सोकियार समुदाय कुशवाह समुदाय के समान है.

भुवनेश्वर मेहता को काउंटर करने के लिए इंडी गठबंधन के पास ये है प्लान

हज़ारीबाग लोकसभा सीट पर भुवनेश्वर मेहता के उतरने से इंडी अलायंस के उम्मीदवार को काफी नुकसान हो सकता है, ऐसे में अगर विभिन्न पॉकेट से कुछ छोटे-बड़े हिंदू राष्ट्रवादी संगठन के सदस्य भी मैदान में उतरते हैं तो इससे भुवनेश्वर मेहता को होने वाले संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है. ऐसे में रंजीत केसरी का नाम हज़ारीबाग़ लोकसभा में उछल रहा है, लेकिन भुवनेश्वर मेहता और रंजीत केसरी के बीच साफ़ अंतर है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, रंजीत केसरी का भुवनेश्वर मेहता की तुलना में वोटों पर कोई खास राजनीतिक असर नहीं है. अगर हज़ारीबाग़ लोकसभा में तथा कथित हिंदूवादी चेहरे पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरते हैं तो राजनीतिक विश्लेषक यह अनुमान लगाएंगे कि यह इंडिया अलायंस के थिंक टैंक द्वारा खेला जा रहा खेल है. एक बात स्पष्ट है-ये बातें सुनी-सुनाई बातों या सूत्रों के आधार पर कही जा सकती हैं, लेकिन इन्हें साबित करना लगभग असंभव है.

जय प्रकाश पटेल और भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के बीच वोटों का बंटवारा हो सकता है निर्णायक

इस चुनाव में जय प्रकाश पटेल और भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के बीच वोटों का बंटवारा निर्णायक साबित हो सकता है. निष्कर्षतः कोइरी-कुर्मी समुदाय के दो मजबूत उम्मीदवारों, जय प्रकाश पटेल और भुवनेश्वर प्रसाद मेहता की मौजूदगी, इंडिया अलायंस के जीत लिए चुनौती पैदा कर सकती है और अंततः भाजपा उम्मीदवार मनीष जयसवाल को फायदा पहुंचा सकती है. ऐसे में अगर अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न तथाकथित हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के सदस्य भी मैदान में उतरते हैं, तो यह इंडी गठबंधन के लिए संभावित नुकसान को कम कर सकता है. लोकसभा चुनाव में हिंदू राष्ट्रवादी संगठन के सदस्यों की भागीदारी या नामांकन से कांग्रेस के जय प्रकाश भाई पटेल को संभावित फायदा हो सकता है. भाजपा और कांग्रेस दोनों के थिंक टैंक निश्चित रूप से अपने-अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहे हैं और नामांकन के अंतिम दिन स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. हालाँकि, बाद में स्थिति बदल भी सकती है.

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