Johar Live Desk : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर सुनवाई शुरू हुई। बुधवार को भी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में सुनवाई जारी रहेगी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने दो जीवित लोगों को कोर्ट में पेश कर सनसनीखेज दावा किया कि उन्हें ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मृत घोषित किया गया है।
RJD का आरोप : 12 जीवित लोगों को मृत बताया
RJD सांसद मनोज झा की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जीवित लोगों को मृत घोषित किया गया है। जवाब में चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने स्वीकार किया कि इस तरह की प्रक्रिया में कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं, लेकिन ड्राफ्ट लिस्ट होने के कारण इन्हें ठीक किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहने को कहा, जिसमें प्रक्रिया शुरू होने से पहले और बाद में मतदाताओं और मृतकों की संख्या जैसे सवाल शामिल हैं।
योगेंद्र यादव का दावा : जीवित लोगों को मृत घोषित किया
योगेंद्र यादव ने मंगलवार को एक पुरुष और एक वृद्ध महिला को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। उन्होंने पीठ से कहा, “इन लोगों को मृत घोषित किया गया, जबकि ये जीवित हैं और इनके पास आधार कार्ड समेत सभी दस्तावेज हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि इन लोगों को ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिया गया।
आधार कार्ड पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस रुख का समर्थन किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “आधार का स्वतंत्र रूप से सत्यापन जरूरी है।” कोर्ट ने यह भी पूछा था कि अगर फर्जीवाड़े की बात है तो धरती पर ऐसा कोई दस्तावेज नहीं, जिसकी नकल न हो सके। कोर्ट ने आयोग से सवाल किया था कि 11 दस्तावेजों की सूची का आधार क्या है और राशन कार्ड को क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा। आयोग ने जवाब दिया कि राशन कार्ड बड़े पैमाने पर बनाए गए हैं और इनमें फर्जीवाड़े की आशंका अधिक है।
65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने का आरोप
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि SIR प्रक्रिया में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। इनमें से कुछ के मृत होने, कुछ के पलायन करने या डुप्लिकेट वोटर कार्ड होने की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर नाम काटे गए हैं, तो वह हस्तक्षेप करेगा। कोर्ट ने NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) से कहा था कि अगर खामियां मिलीं, तो पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है।
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि वह कानूनी तरीके से काम कर रहा है और ड्राफ्ट लिस्ट से हटाए गए नामों को सार्वजनिक करना जरूरी नहीं। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना नोटिस के किसी भी मतदाता का नाम नहीं हटाया जाएगा। आयोग के आंकड़ों के मुताबिक RJD, कांग्रेस, माले और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पास हजारों बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) होने के बावजूद किसी ने औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की।
याचिकाकर्ताओं की दलील
RJD सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 याचिकाकर्ताओं ने SIR प्रक्रिया को चुनौती दी है। उनकी ओर से वकील कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और अभिषेक मनु सिंघवी ने जिरह की। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची और नाम हटाने के कारण सार्वजनिक किए जाएं।
क्या है SIR विवाद?
बिहार में मतदाता सूची को ठीक करने के लिए चुनाव आयोग ने SIR प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें मृत, पलायन कर चुके या डुप्लिकेट वोटर कार्ड वाले लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं और वैध मतदाताओं के नाम भी हटा दिए गए। ड्राफ्ट लिस्ट पर आपत्ति दर्ज करने की समय सीमा 8 अगस्त थी, लेकिन राजनीतिक दलों ने औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की, जिस पर आयोग ने उनकी गंभीरता पर सवाल उठाए।
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