Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    2 Aug, 2025 ♦ 8:46 AM
    • About Us
    • Contact Us
    • Webmail
    Facebook X (Twitter) Instagram YouTube Telegram WhatsApp
    Johar LIVEJohar LIVE
    • होम
    • देश
    • विदेश
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुड़
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सराइकेला-खरसावां
      • साहेबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • राजनीति
    • बिहार
    • कारोबार
    • खेल
    • सेहत
    • अन्य
      • मनोरंजन
      • शिक्षा
      • धर्म/ज्योतिष
    Johar LIVEJohar LIVE
    Home»झारखंड»रिम्स को स्वास्थ्य विभाग ने किया 465 करोड़ का आवंटन, सुधरेगी व्यवस्था
    झारखंड

    रिम्स को स्वास्थ्य विभाग ने किया 465 करोड़ का आवंटन, सुधरेगी व्यवस्था

    Team JoharBy Team JoharJune 30, 2024No Comments4 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Email Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Email Copy Link

    रांची: राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स में व्यवस्था सुधारने को लेकर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते है. हर साल हॉस्पिटल का सालाना बजट भी बढ़ाया जा रहा है. इसके बावजूद मरीजों को हॉस्पिटल में बेसिक सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है. कभी मशीनें खराब रहती है तो कभी दवाएं नहीं मिल पाती. वहीं डेवलपमेंट के नाम पर करोड़ों रुपए का काम जारी रहता है. फिर भी मरीज परेशान रहते है. अब स्वास्थ्य विभाग ने इस बार हॉस्पिटल को 465 करोड़ रुपए कर दिया है. वहीं राशि का आवंटन भी विभाग ने कर दिया है. ऐसे में उम्मीद है कि चालू वित्तीय वर्ष में मरीजों को बेहतर सुविधा मिलेगी.    

    1960 से शुरू हुई रिम्स की यात्रा

    1960 में रांची मेडिकल कॉलेज की यात्रा 150 छात्रों के पहले बैच से शुरू हुई थी. तब से आज तक ये संस्थान पहले आरएमसीएच बना और अब रिम्स के नाम से जाना जाता है. लेकिन इतने सालों के इस सफर में रिम्स में कई बड़े बदलाव देखने को मिले. कई नामी डायरेक्टर के हाथों में हॉस्पिटल की कमान गई. लेकिन आज भी यह हॉस्पिटल कई मायनों में पिछड़ रहा है.

    वहीं सुविधाओं की बात करें तो इसपर करोड़ों रुपए फूंक दिए गए. पर यहां इलाज के लिए आने वाले मरीज आज भी प्राइवेट जांच घरों के भरोसे है. रिम्स में या तो मशीनें पुरानी हो चुकी है या फिर खराब पड़ी है. लेकिन इन सबका खामियाजा रिम्स में आने वाले मरीज भुगत रहे है. बता दें कि 1963 में देश के पहले राष्ट्रपति के निधन के बाद रांची मेडिकल कालेज का नाम बदलकर राजेंद्र मेडिकल कालेज हॉस्पिटल हुआ. इसके बाद 2002 में एम्स की तर्ज पर आरएमसीएच का नाम रिम्स किया गया.

    बजट के बाद भी मशीनें दुरुस्त नहीं

    राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स का बजट 400 करोड़ रूपए से अधिक का है. दवा से लेकर मशीनों की खरीदारी के लिए कमिटी भी है. लेकिन शायद ही कभी ऐसा हुआ कि सभी मशीनें दुरुस्त हो. इसका उदाहरण हॉस्पिटल में लगी सीटी स्कैन और एमआरआई मशीनें है. जो दस साल से अधिक पुरानी हो चुकी है. अब ये मशीनें एनुअल मेंटेनेंस के भी लायक नहीं है. इसके बावजूद प्रबंधन नई मशीनों की खरीदारी नहीं कर रहा है. आज स्थिति यह है कि कैंपस में पीपीपी मोड पर काम कर रही प्राइवेट एजेंसी ही रिम्स के मरीजों की रेडियोलॉजी जांच कर रही है.

    इमरजेंसी के मरीजों का इलाज तो ट्रामा सेंटर में लगी सीटी और अन्य मशीनों से हो जाता है. बाकी सामान्य मरीजों को लंबी वेटिंग मिल रही है. जल्दी रिपोर्ट के चक्कर में उनके पास प्राइवेट में जाने के अलावा कोई चारा नहीं है. वहीं ब्लड टेस्ट के लिए भी रिम्स मेडाल के भरोसे है. जबकि इस एजेंसी को पीपीपी मोड पर इसलिए लाया गया था ताकि वैसी जांच की जा सके जो रिम्स में उपलब्ध न हो. पर आज की स्थिति यह है कि इस लैब में मरीजों के सभी टेस्ट किए जा रहे है.

    बेड बढ़े पर मैनपावर नहीं

    हॉस्पिटल में मैनपावर की भारी कमी है. डॉक्टर से लेकर नर्स भी मरीजों की तुलना में कम है. इसके अलावा वार्ड ब्वाय और अन्य स्टाफ भी कम है. जिस वजह से मरीजों की प्रापर देखभाल नहीं हो पाती. इसे लेकर भी प्रबंधन गंभीर नहीं है. जबकि स्थापना के बाद से लगातार बेड बढ़ते जा रहे है. नए विंग बनाए जा रहे है. लेकिन इसकी तुलना में मैन पावर बढ़ाने को लेकर प्रबंधन ने ध्यान नहीं दिया. काम चलाने के लिए आउट सोर्स पर स्टाफ तो रखे जा रहे है पर वे भी पूरी तरह से ट्रेंड नहीं है. इस वजह से भी मरीज परेशान है.

    पूरा है बजट फिर भी बाहर से ले रहे दवा

    हॉस्पिटल के बड़े बजट में एक हिस्सा दवाओं का भी है. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग भी फंड देता है. इसके बावजूद हॉस्पिटल में दवाओं की कमी है. इनडोर में इलाज करा रहे मरीजों को सभी दवाएं नहीं मिल पाती. वहीं ओपीडी के मरीजों को भी डिस्पेंसरी से खाली हाथ लौटना पड़ता है. ऐसी स्थिति में मरीजों के पास बाहर से दवा खरीदने के अलावा कोई चारा नहीं होता. इस चक्कर में मरीजों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है. इतना ही नहीं मरीजों के साथ परिजनों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है. वहीं जेनरिक दवा को लेकर डॉक्टरों के भी नखरे कम नहीं है.

    आवंटन करोड़ रिम्स विभाग व्यवस्था सुधरेगी स्वास्थ्य
    Follow on Facebook Follow on X (Twitter) Follow on Instagram Follow on YouTube Follow on WhatsApp Follow on Telegram
    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Telegram WhatsApp Email Copy Link
    Previous Articleमवेशी लदा वाहन पलटा, कई मवेशियों की मौत, चालक फरार
    Next Article Hool Diwas: धनबाद विधायक ने झारखंड के सभी अमर शहीदों को दी श्रद्धांजलि

    Related Posts

    झारखंड

    झारखंड में फिर तेज हुआ मानसून, कई जिलों में भारी बारिश का अलर्ट

    August 2, 2025
    झारखंड

    देवघर एम्स में राष्ट्रपति के कार्यक्रम के दौरान सुरक्षा चूक, चार पुलिसकर्मी निलंबित

    August 2, 2025
    जोहार ब्रेकिंग

    BREAKING : झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन की बिगड़ी तबियत, बाथरूम में गिरने से ब्रेन में ब्लड क्लॉट

    August 2, 2025
    Latest Posts

    झारखंड में फिर तेज हुआ मानसून, कई जिलों में भारी बारिश का अलर्ट

    August 2, 2025

    देवघर एम्स में राष्ट्रपति के कार्यक्रम के दौरान सुरक्षा चूक, चार पुलिसकर्मी निलंबित

    August 2, 2025

    Aaj Ka Rashifal, 02 August 2025 : जानें किस राशि का क्या है आज राशिफल

    August 2, 2025

    BREAKING : झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन की बिगड़ी तबियत, बाथरूम में गिरने से ब्रेन में ब्लड क्लॉट

    August 2, 2025

    आदिवासी महोत्सव 2025 की तैयारियों को लेकर मुख्य सचिव ने की समीक्षा बैठक…

    August 1, 2025

    © 2025 Johar LIVE. Designed by Forever Infotech. | About Us | AdSense Policy | Privacy Policy | Terms and Conditions | Contact Us

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.