Johar Live Desk : नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की, इसलिए उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। जब चारों ओर अंधेरा था, तब उनकी हल्की सी मुस्कान से सृष्टि की उत्पत्ति हुई। यह देवी सूर्य की प्रचंड ऊर्जा को सहन करने की शक्ति रखती हैं और अपने भक्तों को बल, बुद्धि और तेज प्रदान करती हैं।
बुध ग्रह से है खास संबंध
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां कूष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है। उनकी पूजा से बुध ग्रह के दोष शांत होते हैं, जिससे व्यक्ति की वाणी में मधुरता, बुद्धि में तेजी और जीवन में सफलता मिलती है।
मां को चढ़ाएं ये विशेष प्रसाद
इस दिन मां कूष्मांडा को केसर युक्त पीला पेठा, सफेद पेठा, मालपुआ, बताशे और ताजे फल अर्पित किए जाते हैं। श्रद्धा से ये प्रसाद चढ़ाने पर मां प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

ऐसे करें मां की पूजा
सुबह स्नान कर पीले वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। पीले कपड़े पर मां कूष्मांडा की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें पीले फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप और अक्षत चढ़ाएं। पूजा के बाद दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
मां कूष्मांडा के मंत्र
मूल मंत्र: ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
बीज मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नमः॥
स्तुति मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी, मुझ पर दया करो महारानी।
पिगंला ज्वालामुखी निराली, शाकंबरी मां भोली भाली।
लाखों नाम निराले तेरे, भक्त कई मतवाले तेरे।
मां के मन में ममता भारी, क्यों ना सुनेगी अरज हमारी।
तेरे दर पर किया है डेरा, दूर करो मां संकट मेरा।
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