पैदल घर जा रहे प्रवासी मजदूरों का दर्द, भूखे पेट बच्चे तो लड़खड़ाते बुजुर्ग गृह राज्य जाने को मजबूर

Joharlive Desk

 नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से देश के औद्योगिक शहरों में लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर फंस गए हैं। सरकार इन प्रवासी मजदूरों को इनके मूल राज्यों में पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन कर रही हैं। हालांकि, इसके बाद भी हजारों मजदूर ऐसे हैं, जो पैदल ही अपने घरों की ओर चल दिए हैं।

भारत के राजमार्गों पर इसकी तस्वीर देखी जा सकती हैं, जहां बदहाली और दुखों से परेशान मजदूरों का कारवां कोविड-19 प्रभावित शहरों और औद्योगिक टाउनशिप से पैदल, साइकिलों और ट्रकों में ठुसी हुई भीड़ में सवार होकर घरों की तरफ जा रहा है।
पुणे और भोपाल के बीच 800 किलोमीटर लंबा रास्ता, जो मुंबई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा है, पर हजारों प्रवासी मजदूर, बच्चों को गोद में लिए माएं और लड़खड़ाते बुजुर्ग मजदूर अंतहीन कतारों में चलते जा रहे हैं। थके हुए लोग सड़क किनारे सो रहे हैं। बच्चे भूखे पेट रो रहे हैं।  

राजमार्गों पर मजदूरों की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने साथ जो हो सकता था, वो लेकर चल पड़े हैं। रविवार को सुबह चार बजे एक ट्रक की लाइट एक रोते हुए बच्चे पर पड़ी, जो अपने माता-पिता के साथ पैदल सफर कर रहा है। बच्चे की उम्र मुश्किल से चार वर्ष रही होगी। जब उसके माता-पिता से पूछा गया कि आप लोग कहां से सफर कर रहे थे, तो उन्होंने बताया कि वह पुणे से आ रहे है।

उत्तर प्रदेश के ललितपुर के बालाभेट गांव में पिछले शनिवार एक प्रवासी महिला ने सड़क के किनारे ही एक बच्ची को जन्म दे दिया। यह महिला दर्जनों प्रवासी मजदूरों के साथ मध्यप्रदेश के धार जिले से 500 किलोमीटर का सफर करके यहां पहुंची थी। वह अपने मूल गांव बरखरिया जा रही थी।

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 30 के रास्ते पुणे से मध्यप्रदेश के सतना जा रहे चार मजदूरों ने बताया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है वह क्या करें? उन्होंने कहा कि अब हमारा दिमाग काम करना बंद हो गया है और हम ऐसे ही लटक गए हैं।

इन मजदूरों में से एक आगरा के अजय चौहान ने बताया कि वह पुणे के रविवार पेठ से आए हैं, जो कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा कि उन्हें पास नहीं मिल सकता है, इसलिए वह पैदल ही घर जा रहे है।