शाह को सीएए-एनआरसी का विरोध करने वालों की परवाह नहीं तो लागू करके दिखाएं : प्रशांत

JoharLive Team

पटना। बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोग से सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता एवं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान कि जिसे विरोध करना है करे, सीएए वापस नहीं होगा पर पलटवार करते हुए आज कहा कि यदि श्री शाह नगरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का विरोध करने वालों की परवाह नहीं करते तो अपने वादे के मुताबिक इस कानून को लागू क्यों नहीं कर देते।

श्री किशोर ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर श्री शाह को चुनौती देते हुए ट्वीट किया, “नागरिकों की असहमति को खारिज करना किसी भी अच्छी सरकार की मजबूती का संकेत नहीं है। यदि अमित शाह विरोध करने वालों की परवाह नहीं करते तो क्यों नहीं आगे बढ़कर सीएए और एनआरसी को इसी क्रम में लागू कर देते हैं। श्री शाह तो संसद में सीएए और एनआरसी लागू करने की घोषणा भी कर चुके हैं।”

गौरतलब है कि श्री शाह ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कथा पार्क में सीएए के समर्थन में आयोजित विशाल जनसभा में सीएए का विरोध कर रहे विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा था, “मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि जिसे विरोध करना है करे लेकिन सीएए वापस नहीं होने वाला है।”
श्री किशोर नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) से लेकर सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध करते रहे हैं। उन्होंने तो लोकसभा में सीएबी को समर्थन देने के जदयू नेतृत्व के फैसले पर कड़ी नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था, “धर्म के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव करने वाला नागरिकता संशोधन विधेयक पर जदयू के समर्थन से मैं दुखी हूं। जदयू के द्वारा इस विधेयक का समर्थन पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता है, जहां पहले ही पन्ने पर धर्मनिरपेक्षता शब्द तीन बार लिखा हुआ है।
जदयू नेता ने इशारों-इशारों में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर हमला बोला और कहा था, “नागरिकता संशोधन विधेयक पर समर्थन पार्टी नेतृत्व के विचारधारा से मेल नहीं खाता है, जो कि महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित है।”
इतना ही नहीं वह आगे भी मुखर रहे और संसद के दोनों सदन से सीएबी पारित होने के बाद कहा, “संसद में बहुमत की जीत हुई है। अब न्यायपालिका के अलावा भारत की आत्मा को बचाने की जिम्मेवारी 16 गैर भाजपा शासित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों पर है क्योंकि इन राज्यों में इस विधेयक के कानून बनने के बाद लागू भी करना है। पंजाब, पश्चिम बंगाल और केरल के मुख्यमंत्री सीएबी एवं राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को ना कह चुके हैं। अब अन्य मुख्यमंत्रियों को भी एनआरसी और सीएबी पर अपना रुख स्पष्ट करने का समय आ गया है।”