New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी नागरिकों, विशेषकर दिव्यांगों और बुजुर्गों के लिए सुरक्षित और अतिक्रमणमुक्त फुटपाथ सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार को बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह चार हफ्तों के भीतर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार करे, ताकि देशभर के फुटपाथ सुलभ और सुरक्षित बनाए जा सकें। यह आदेश डॉक्टर एस. राजासेकरन की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें उन्होंने देश में फुटपाथों की खराब स्थिति और दिव्यांगों की परेशानियों को रेखांकित किया था।
फुटपाथों की बदहाली पर याचिका
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि देश के कई हिस्सों में फुटपाथ हैं ही नहीं, और जहां हैं, वे या तो टूटे-फूटे हैं या अतिक्रमण की चपेट में हैं। इससे न केवल दिव्यांगों को आवाजाही में भारी दिक्कत होती है, बल्कि आम पैदल यात्रियों की जान भी खतरे में रहती है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन का अधिकार) का हवाला देते हुए तर्क दिया गया कि सुरक्षित चलना हर नागरिक का मूल अधिकार है।
तीन प्रमुख बिंदुओं पर दिशा-निर्देश बनाने का आदेश
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि इस मुद्दे पर अभी तक कोई ठोस राष्ट्रीय दिशा-निर्देश नहीं हैं। कोर्ट ने केंद्र को तीन अहम बिंदुओं पर नियम बनाने का निर्देश दिया:
- सभी नई और पुरानी सड़कों पर तकनीकी मानकों के साथ फुटपाथ की अनिवार्यता।
- फुटपाथों का डिजाइन ऐसा हो कि दिव्यांगों को कोई असुविधा न हो।
- अतिक्रमण हटाने और रोकने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करना।
केंद्र नाकाम रहा तो कोर्ट बनाएगा नियम
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार तय समय में दिशा-निर्देश नहीं बनाती, तो कोर्ट अमिकस क्यूरी की मदद से स्वयं नियम तैयार करेगा। राज्यों को यह छूट दी गई है कि वे राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों को अपनाएं या अपने नियम बनाएं, बशर्ते मानक एकसमान हों।
NHAI को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को भी इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है। अगली सुनवाई 1 सितंबर 2025 को होगी, जिसमें केंद्र और राज्यों की जवाबदेही की समीक्षा की जाएगी।
दिव्यांगों और पैदल यात्रियों के अधिकारों को मिली मजबूती
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को दिव्यांगों और पैदल यात्रियों के अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। यह फैसला देश में सुरक्षित और समावेशी बुनियादी ढांचे की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की उम्मीद जगाता है।
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