New Delhi : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS ) गुरुवार को अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। 1925 में एक छोटे समूह के रूप में शुरू हुआ यह संगठन आज भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में सक्रिय सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन बन चुका है। आइए नजर डालते हैं संघ के 100 सालों के इस ऐतिहासिक सफर पर-
संघ की स्थापना और शुरुआती वर्ष (1925–1940)
- 1925: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर को नागपुर में RSS की स्थापना की।
- 1926: संगठन को ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम मिला। पहली शाखा 28 मई को नागपुर में शुरू हुई।
- 1929: हेडगेवार को सरसंघचालक बनाया गया।
- 1930: स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करते हुए हेडगेवार सत्याग्रह में शामिल हुए और जेल गए।
संघ का विस्तार और चुनौतियां (1940–1960)
- 1940: हेडगेवार का निधन। माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) दूसरे सरसंघचालक बने।
- 1948: महात्मा गांधी की हत्या के बाद RSS पर प्रतिबंध लगा, जो 1949 में हटाया गया।
- 1952: भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की।
- 1955: गोवा मुक्ति आंदोलन में संघ स्वयंसेवकों की भागीदारी रही।
राष्ट्रीय पहचान और राजनीतिक प्रभाव (1960–1980)
- 1963: गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार RSS की भागीदारी हुई।
- 1975: आपातकाल के दौरान संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन 1977 में यह हटा लिया गया।
- 1980: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन हुआ, जिसमें संघ की विचारधारा की गूंज सुनाई दी।
आधुनिक युग और वैश्विक विस्तार (1990–2025)
- 1992: बाबरी विध्वंस के बाद तीसरी बार संघ पर प्रतिबंध लगा, जिसे 1993 में हटाया गया।
- 2009: मोहन भागवत RSS के छठे सरसंघचालक बने।
- 2016: खाकी निकर की जगह भूरे रंग की पतलून को वर्दी में शामिल किया गया।
- 2021: दत्तात्रेय होसबोले सरकार्यवाह नियुक्त हुए।
संगठन के प्रमुख उपक्रम और संस्थाएं
- अभाविप (1949),
- भारतीय मजदूर संघ (1955),
- विश्व हिंदू परिषद (1964),
- संस्कार भारती (1981),
- लघु उद्योग भारती,
- सेवा भारती,
- अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद आदि।
आज का संघ
आज RSS भारत में लाखों स्वयंसेवकों के साथ हजारों शाखाएं चला रहा है। संगठन शिक्षा, सेवा, संस्कार, राष्ट्रवाद और सामाजिक समरसता जैसे मुद्दों पर लगातार काम कर रहा है।
संघ का यह शताब्दी वर्ष इतिहास, संघर्ष और सेवा का प्रतीक है। 100 वर्षों में RSS ने न केवल खुद को मजबूत किया, बल्कि भारत की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

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