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    धर्म/ज्योतिष

    दूध की नदियां : ध्यान आश्रम के “योगी अश्विनी”

    Team JoharBy Team JoharApril 7, 2021No Comments5 Mins Read
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    हमारे पुराणों में दूध को अमृत कहा गया है। चरक सम्हिता में बताया गया है कि दूध मनुष्य में ओजस और प्राण बढ़ाता है, ‘खीरोजस्करा पुंसम’। प्रभु धन्वन्तरि कहते है कि गाय का दूध हर प्रकार के रोग में लाभदायक है।

    अथर्व वेद (4-21-6) में स्थित है, “युयं गवो मद्यतं कृष्म चिसकिरीराम, चित कृणुथा सुप्रतिकम, भद्र गृहं कृणुथ, भद्रवापो बेहद वो व्य उच्यते, सभासु।” गौ अपने दूध से एक कमज़ोर और बीमार व्यक्ति को शक्तिशाली बना सकती है, शक्तिहीन को शक्ति प्रदान कर सकती है और एक परिवार को समाज में समृद्धि और सम्मान प्रदान कर सकती है।


    दूध को पूर्णाहार कहा गया है जो शरीर की सातों धातुओं को शक्ति, सौंदर्य, और पोषण प्रदान करता है. दूध में ओजस गुण पाए जाते है जो कि सभी धातुओं का मूल सार है।


    पारम्परिक तरीके से दूध को उबालने के बाद बार-बार एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेल कर झाग बनने तक फेंटा जाता है । यह प्रक्रिया से ढूध की वायु निकल जाती है, और उसका पाचन आसान हो जाता है। अन्य सभी ढूध की तुलना में, गाय के दूध को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।


    दूध से हमें मक्खन, दही, चीज़, और घी की प्राप्ति होती है। यह सारे पदार्थ अत्यधिक पौष्टिक हैं और हमारे खान-पान का एक अहम् हिस्सा हैं।


    समृद्ध साम्राज्यों के लिए कहा जाता था कि वहाँ दूध की नदियां बहती थीं। और जिन राज्यों का पतन हुआ था, उनके लिए कहा जाता था कि वहाँ खून की नदियाँ बहती थीं। आज हमारे देश में दूध बहुत कम है। घी बेचने वाले आज हमें गाय की चर्बी बेच रहें हैं, जिसे हम घी समझ कर खा रहे हैं। यह समृद्धि की निशानी है या पतन की?


    घृत या घी को देवों का आहार है और उनके पोषण का स्रोत कहा गया है। यह भोजन देवताओं को दिव्य गुणों से संपन्न करता है ।शिव पुराण में एक कहानी है जो देवों और असुरों के आहार में परिवर्तन के प्रभाव का विवरण देती है।

    एक बार तारकासुर नामक एक बलवान असुर ने मनुष्यों को हवन करते हुए,इंद्रदेव के बजाय स्वयं पर प्रसाद चढ़ाने के लिए विवश कर दिया जिसके कारण देवताओं के पोषण की आपूर्ति रुक गयी।

    अब मनुष्यों से हवन द्वारा घी-रुपी पोषण ना मिलने के कारण, देव कमज़ोर पड़ने लगे।दुःखी हो कर उन्होंने भगवान विष्णु के द्वार खड़खड़ाये। भगवान विष्णु केवल मुस्कुराये और बोले “देखते हैं आगे क्या होता है”।

    तारकासुर के आदेश के बावजूद राज्य में दो लोग ऐसे थे जिन्होंने इंद्र को प्रसाद देना जारी रखा। क्रोधित होकर, तारकासुर ने अपने पुत्रों को अपराधियों का वध करने का आदेश दे दिया ।


    चूंकि तारकासुर के दोनों पुत्र देवों के आहार का सेवन कर रहे थे जिस कारण उन्हें भोले भाले मनुष्यों के प्रति दया भाव जागृत हो गया और उन्होंने अपने पिता के आदेश का उल्लंघन करते हुए, उन मनुष्यों को जीवन दान दे दिया।दोनों पुत्र स्वयं भी तपस्या के मार्ग पर चल पड़े।

    असुर, जिनका मूल स्वभाव ही तबाही और विनाश का है, वह भी घी के आहार से मिले सूक्ष्म प्राण के पोषण से परिवर्तित हो गए। उनमें भी दया और करुणा जैसे सूक्ष्म गुण आ गए। आपके द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन का इतना तीव्र प्रभाव होता है।


    आज जो घी आपको बाज़ार में मिलता है, वह गाय की चर्बी से लिप्त होता है। इस घी में मृत पशुओं के पेट और बाकी अंगों से निकाली गयी चर्बी की मिलावट की जाती है। हर रोज़ हज़ारों गायों और भैंसों की बलि चढ़ाई जाती है जो अंततः किसी न किसी रूप में हमारे भोजन में ही वापिस आ मिलती हैं। यूरिया और डिटर्जेंट जैसे केमिकलों से लिप्त नकली दूध बाज़ार में थोक के भाव मिलता है।


    जहाँ एक ओर तारकासुर ने असुरों को देवों के आहार पर डाला था, आज मनुष्य रुपी असुर इंसानों और देवों को इस बर्बर आहार का सेवन करवा रहे हैं। परिणाम आप खुद ही देख सकते हैं – हर जगह अपराध, दर्द और पीड़ा बढ़ रही है।कलियुग में, हम प्रदूषण के जिस स्तर तक पहुंच गए, वह इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया ।हम जो कुछ भी खाते हैं, पीते हैं और सांस लेते हैं ,हर वास्तु में मिलावट है।हम जो कुछ भी उपभोग करते हैं उसमें शुद्धता सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है।


    शुद्ध दूध प्राकृतिक रूप से हल्का मीठा होता है और उबालने पर हलके भूरे रंग का हो जाता है। शुद्ध घी, सामान्य तापमान पर पिघला हुआ रहता है और सर्दियों में हथेली पर रखते ही पिघल जाता है। इसका रंग शहद-समान सुनहरा होता है।


    चेतना के स्तर पर गाय एक बहुत ही विकसित प्राणी है। सभी धर्मों और संस्कृतियों में इस को बहुत सम्मान दिया गया है। वास्तव में, महाभारत में एक कहानी है, जहां राजा नहुष के साथ एक बार्टर सौदे में महान ऋषि च्यवन अपनी कीमत एक गाय के बराबर लगाते हैं जो यह दर्शाता है कि गाय का स्तर कितना ऊँचा है।

    गौमाँस खाना एक मनुष्य के खाने के बराबर है और ऐसे कर्म की प्रतिक्रिया भी भयंकर होती है ।वेदों के अनुसार समाज में बढ़ते रोग गौहत्या के आनुपातिक हैं। तरह-तरह की नई बीमारियाँ और नवजात शिशुओं में जिस तरह की विकृतियाँ देखी जा रही हैं, इस कथन का पर्याप्त प्रमाण हैं।

    योगी अश्विनी’ ध्यान आश्रम की मार्गदर्शक ज्योति हैं । उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.

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