क्यों मनाई जाती है होली, क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, होलाष्टक क्यों है अशुभ, जानने के लिए पढ़ें

होली विशेष : फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को होलिका दहन होगा. 25 मार्च को धुलंडी खेली जाएगी. हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन के लिए 2 घंटा 06 मिनट का हो शुभ मुहूर्त रहेगा. इस के कारण इस दिन भद्र सुबह 09:26 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 10 बजकर 27 मिनट तक भूमि लोक की रहेगी, जो की सर्वथा त्याज्य है. अतः होलिका दहन भद्र के पश्चात मध्य रात्रि 10:27 से 12:33 के मध्य होगा. होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धी योग सुबह 07:34 से दूसरे दिन सुबह 06:29 तक है और रवि योग सुबह 06:20 से सुबह 07:34 मिनट तक है.

होलिका दहन, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है,  जिसमें होली के पूर्व संध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है. होलिका दहन की पूजा करने से होलिका की अग्नि में सभी दुख जलकर खत्म हो जाते हैं और ग्रहदोष भी दूर होते हैं. होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है. यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है. होलिका दहन के आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है.

होलिका दहन की पूजा 

होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है. सबसे पहले होलिका पर रोली, हल्दी और गुलाल से टीका लगाया जाता है. इसके बाद जल, रोली, कच्चा सूत, बताशे, चावल, फूल, नारियल आदि को चढ़ाया जाता है. यह सब चढ़ाने के बाद होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा की जाती है.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 

फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है.

इस साल होलिका दहन की ति​थि पर सुबह में भद्रा रहेगी.

ऋषिकेश पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को होलिका दहन के लिए केवल 2 घंटा 06 मिनट का समय रहेगा. इस दिन भद्रा प्रातः 09:24 मिनट पर शुरू होगी और मध्य रात्रि 10:27 मिनट तक भूमि लोक में रहेगी. इसके बाद होलिका दहन के लिए 2 घंटा 06 मिनट का समय शुभ रहेगा. इस दिन भद्रा की पूंछ शाम 06:33 से शाम 07:53 तक है. और भद्रा का मुख शाम 07:53 से रात्रि 10:06 बजे तक है. भद्रा को अशुभ माना गया है. फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है.

होली का महत्व

भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया. होलिका को वरदान मिला था कि उस में आग का प्रभाव नहीं होगा.  इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई. भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर वहीं भस्म हो गई.  इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है.

होलिका दहन  में राशि अनुसार आहुति देने और रंग लगाने से सभी मनोकामना पूर्ण होकर ग्रह बाधा दूर होंगे.

होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है. इस अवधि में सभी प्रकार के शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है.

प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होली महापर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन होली के आठ दिन पहले यानि फाल्गुन मास के अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाता है और इसका समापन पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन के दिन होता है. शास्त्रों में बताया गया है कि होलाष्टक के इन आठ दिनों में कई प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार इत्यादि पर रोक लग जाती है और होली पर्व से इन कार्यों को पुनः शुरू किया जाता है.

प्रत्येक वर्ष होलाष्टक आठ दिन का होता है. यह 17 मार्च  2024 से शुरू होगा और इसका समापन होलिका दहन के दिन यानि 24 मार्च 2024 को होगा.

होलाष्टक को क्यों माना जाता है अशुभ

प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि होलाष्टक की अवधि में आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं. पहले दिन यानि अष्टमी तिथि को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी तिथि पर शनि, एकादशी पर शुक्र, द्वादशी पर गुरु, त्रयोदशी तिथि पर बुध, चतुर्दशी पर मंगल और पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र स्थिति में रहते हैं. इस अवधि में किए गए मांगलिक कार्यों पर इन ग्रहों का दुष्प्रभाव पड़ता है, जिसका असर सभी राशियों के जीवन पर भी पड़ सकता है. जिस वजह से जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. यही कारण है कि होली से पहले इन आठ दिनों में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है.