Jamshedpur: जमशेदपुर के सुंदरनगर इलाके में मंगलवार दोपहर उस समय हड़कंप मच गया जब रेलवे प्रशासन ने भारी पुलिस बल के साथ अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया। रेलवे फाटक के पास बनी झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों को हटाकर वहां बनी कुल 24 झोपड़ियों को बुल्डोजर से गिरा दिया गया। इस कार्रवाई के बाद कई गरीब परिवारों के पास रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं बचा।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस जमीन पर लंबे समय से अवैध कब्जा था और कार्रवाई नोटिस के बाद की गई। लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि उन्हें न तो कोई मुआवजा दिया गया और न ही रहने के लिए कोई विकल्प।
स्थानीय निवासी निर्मला देवी ने बताया, “हम पिछले 15 साल से यहीं रह रहे हैं। बिजली का मीटर है आधार और राशन कार्ड भी इसी पते पर है। लेकिन हमें कोई दूसरा घर नहीं दिया गया। क्या गरीबों का कोई हक नहीं है?”
रामजी यादव ने गुस्से में कहा, “सरकार और अदालतें सिर्फ कागजों पर हमारे हक की बात करती हैं। जमीन पर हमें इंसान नहीं समझा जाता। कोई यह नहीं बताता कि अब हम जाएं तो कहां जाएं।”
कानूनी जानकारों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि अतिक्रमण हटाने से पहले वहां रह रहे लोगों को मुआवजा और पुनर्वास देना जरूरी है। सिर्फ नोटिस देना पर्याप्त नहीं होता।
अधिवक्ता नितिन श्रीवास्तव का कहना है कि “इस तरह की कार्रवाई सीधे तौर पर मानवाधिकारों और न्यायिक आदेशों की अवहेलना है। पीड़ित परिवार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रख सकते हैं।”
रेलवे अधिकारी का कहना है कि मुआवजा और पुनर्वास की जिम्मेदारी राज्य प्रशासन की है लेकिन जब जिला प्रशासन से इस बारे में बात की गई तो किसी ने भी साफ-साफ जवाब नहीं दिया। संबंधित अधिकारी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्थानीय नेता मनोज महतो ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा, “सरकार गरीबों का आशियाना उजाड़ रही है लेकिन जनता इसका जवाब जरूर देगी।”
वहीं कई सामाजिक संगठनों ने भी इस कार्रवाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है और बेघर हुए लोगों के लिए तुरंत राहत व पुनर्वास की मांग की है।
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