Patna : बिहार की राजधानी पटना में डेंगू का खतरा हर साल बढ़ता जा रहा है। औसतन हर साल छह से सात हजार मरीजों में डेंगू की पुष्टि एलाइजा टेस्ट से होती है, जबकि सामान्य लक्षण वाले लोग रैपिड एनएस-1 किट से जांच कराकर इलाज करा लेते हैं। इस बार डेंगू की जांच को और प्रभावी बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने नई पीढ़ी की रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) डेंगू कॉम्बो किट शुरू की है।
अनावश्यक भर्ती और जटिलताओं से मिलेगी राहत
यह नई कॉम्बो किट भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एलाइजा टेस्ट की तर्ज पर डेंगू के तीन प्रमुख संकेतकों एनएस-1 एंटीजन, आइजीएम, और आइजीजी एंटीबॉडी की एक साथ जांच करेगी। पुरानी एनएस-1 किट केवल संक्रमण के शुरुआती एक से पांच दिनों की पहचान कर पाती थी, लेकिन नई कॉम्बो किट शुरुआती और सेकेंडरी डेंगू (दूसरा संक्रमण) दोनों का पता लगाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि सेकेंडरी डेंगू अधिक खतरनाक होता है, और यह किट इलाज निर्धारित करने, प्लेटलेट्स की निगरानी, और अनावश्यक अस्पताल में भर्ती को रोकने में मददगार होगी।
पांच हजार से अधिक कॉम्बो किट उपलब्ध
पटना के सिविल सर्जन डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने बताया कि डेंगू जांच के लिए पांच हजार से अधिक कॉम्बो किट उपलब्ध कराई गई हैं। शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को 200-200 किट और प्रखंड आधारित स्वास्थ्य केंद्रों को 150-150 किट दी जा रही हैं। इसके अलावा, मुख्यालय में करीब दो हजार किट रखी गई हैं, जिनका उपयोग हॉटस्पॉट क्षेत्रों में सघन जांच अभियान के लिए होगा।
हर बुखार वाले मरीज की होगी जांच
चिकित्सा प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि डेंगू के मामले बढ़ने पर बुखार से पीड़ित हर मरीज की जांच की जाए। अगर जांच रिपोर्ट निगेटिव आती है, तब भी लक्षणों के आधार पर दवा दी जाएगी, लेकिन ब्रूफेन जैसी दवाओं से परहेज किया जाएगा। सभी बुखार मरीजों की निगरानी डेंगू के संदेह में की जाएगी, ताकि प्लेटलेट्स की स्थिति पर नजर रखी जा सके।
कॉम्बो किट की खासियत
यह किट एक ही खून के सैंपल से डेंगू के तीन मुख्य मार्करों की जांच करती है :
- एनएस-1 एंटीजन : संक्रमण के पहले 1 से 5 दिनों में पाया जाता है।
- आइजीएम एंटीबॉडी : 4-5 दिनों बाद बनता है और वर्तमान संक्रमण का संकेत देता है।
- आइजीजी एंटीबॉडी : पुराने या दोबारा हुए संक्रमण की पुष्टि करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सेकेंडरी डेंगू में प्लेटलेट्स गिरने और आंतरिक रक्तस्राव का खतरा दोगुना होता है। हालांकि, पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट जरूरी रहेगा, लेकिन कॉम्बो किट से तुरंत इलाज शुरू हो सकेगा।
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