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    Home»मनोरंजन»मोहम्मद रफी की जयंती : तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूंगा…
    मनोरंजन

    मोहम्मद रफी की जयंती : तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूंगा…

    Team JoharBy Team JoharDecember 24, 2019No Comments6 Mins Read
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    JoharLive Team

    मोहम्मद रफी हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय गायकों में शुमार हैं। वे लता मंगेशकर के बाद सबसे ज्यादा गीत गाने वाले गायक हैं। मैं रफी साहब कम सुनता रहा हूं क्योंकि मुझे पहले मुकेश पसंद थे और उसके बाद किशोर कुमार। अभी हाल के कुछ वर्षों से अपनी तरफ से एफर्ट कर रफी साहब को सुनता हूं वो भी सारेगामा कारवां की मेहरबानी से। मुझे रफी साहब का एक गीत बेहद पसंद है तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूंगा सफर इक उम्र का पल में तमाम कर लूंगा।

    जीवन का सफर
    मोहम्मद रफीक साहब का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था।पहले रफी साहब का परिवार पाकिस्तानी में रहता था लेकिन बाद में जब रफी साहब छोटे थे तब इनका पूरा परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया। उस समय इनके परिवार में कोई भी संगीत के बारे में नहीं जानता था।

    रफी के बड़े भाई मोहम्मद हामिद ने इनके संगीत के प्रति रूचि को देखकर उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत की शिक्षा लेने भेजा । रफी ने पहला गाना 13 साल की उम्र सटेज पर गाया था। उनके गायन ने प्रसिद्ध संगीतकार श्याम सुंदर को काफी प्रभावित किया। उन्होंने रफी को गाने का निमंत्रण दिया था।

    वैवाहिक जीवन

    रफी जी एक शर्मीले किस्म के व्यक्ति थे। रफी पहली की शादी बेगम विकलिस के साथ हुई। इनसे एक बच्चा है और दूसरी शादी से 6 बच्चे हैं, कुल मिलकर 7 बच्चे हैं। शुरू में तो रफी जी ने बहुत की कम पैसों में गाने गाये थें और इसी कारण एक बार उनका और लता मंगेशकर के बीच गानों की रायल्टी को लेकर विवाद भी हुआ था. मोहम्मद रफी की मृत्यु 31 जुलाई 1980 में मुंबई में हार्ट अटैक से हुई थी।

    रफी साहब की ख्याति और पहचान :

    मोहम्मद रफी साहब को नौशाद ने फिल्म – अनमोल घड़ी फिल्म में मौका दिया। इसके गीत ” तेरा खिलौना टुटा ” से रफी को हिंदी सिनेमा में ख्याति मिली थी। इसके बाद रफी ने शहीद, मेला और दुलारी में भी गाने गाये जो काफी लोकप्रिय हुए।

    बैजू बावरा के गानों ने रफी को लोकप्रिय गायक के रूप में स्थापित किया था। नौशाद ने रफी को अपने निर्देशन में कई गीत गाने को दिए थे। इसी समय शंकर जय किशन को भी उनकी आवाज काफी अच्छी लगी थीं। जयकिशन उस समय राजकपूर के लिये संगीत देते थे लेकिन राज कपूर को केवल मुकेश की आवाज पसंद थी।
    ” चाहे मुझे जंगली कहे फिल्म -जंगली, एहसान तेरा होगा मुझ पर फिल्म- जंगली, ये चाँद से रौशन चेहरा फिल्म- कश्मीर की कली, दीवाना हुआ तेरा फिल्म- कश्मीर की कली। इन गानों से रफी की ख्याति बहुत ही ज्यादा बढ़ गयी थीं।

    चौदवही का चाँद हो के लिए पहला फिल्म फेयर पुरस्कार

    शंकर जयकिशन, नौशाद तथा सचिन देव बर्मन ने रफी से उस समय लोकप्रिय गीत गवाये थे।यह सिलसिला 1960 तक चला था।रफी को 1960 में चौदवही का चाँद नामक शीर्षक गीत के लिये अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इसके बाद रफी ने घराना (1961), काजल (1965), दो बदन (1966) में बेहतरीन गीत गाए। नीलकमल (1968) के गीत में उन्हें दूसरा फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
    रफी को तीसरा फिल्मफेयर अवार्ड्स गीत ‘‘ चाहूँगा मै तुझे साँझ ” के लिये पुरस्कार मिला था। भारत सरकार ने रफी को 1965 में पद्दम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। 1965 में रफी जी संगीतकार जोड़ी कल्याण आनंद जी द्वारा फिल्म – ” जब – जब फूल खिले ”, परदेसिया से ना अखिया मिलाना ” काफी लोकप्रियता मिली थीं. 1966 में फिल्म- सूरज में सदाबहार गीत गाये थे ” बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया हैं ” और इस गीत के लिए चौथा फिल्मफेयर अवार्ड्स पुरस्कार मिला।
    इस गीत का संगीत शंकर निर्देशन प्रख्यात संगीतकार जयकिशन ने दिया था। उसके बाद 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फिल्म ब्रम्हचारी के हिट गाने गाये थे ” दिल के झरोखे में तुझको बैठाकर ” के लिये पांचवा फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

    25,000 गीत गाए

    रफी अपने जीवन में कुल मिलाकर 25,000 गाने गाये. सबसे ज्यादा गाना गाने का रिकार्ड्स भारत के दो गायकों के बीच हैं. रफी जी और सुरों की कोकिला लता मंगेशकर के बीच. लेकिन ज्यदा गानों का रिकार्ड्स और गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स लता मंगेशकर के पास हैं और दूसरा नंबर मोहम्मद रफी का आता हैं।

    रफी ने हिंदी सिनेमा के सभी बड़े अभिनेताओं अशोक कुमार, दिलीप कुमार, मनोज कुमार, राजेन्द्र कुमार, ऋषि कपूर, गुरु दत्त, जॉय मुखर्जी, दिलीप कुमार, फिरोज खान, राजेश खन्ना, शम्मी कपूर,, रणधीर कपूर, सुनील दत्त, संजय खान, शशि कपूर, विनोद खन्ना, पृथ्वी राज कपूर, जीतेन्द्र, राजकपूर, विनोद मेहरा और संजीव कुमार व अमिताभ बच्चन आदि के लिये गाने गाये हैं।

    रफी, मुकेश और किशोर में तुलना
    वैसे तो हर इंसान यूनिक होता है इसलिए उनमें तुलना करना उचित नहीं लगता लेकिन जब वो एक ही तरह का काम कर रहे हों तो स्वाभाविक रूप से तुलना होने ही लगती है। हमें रफी, मुकेश और किशोर कुमार में भी तुलना करनी चाहिए। मुझे लगता है है कि रफी को इन दो गायकों की तुलना में शास्त्रीय संगीत की अधिक जानकारी थी। उनके गले में इन दोनों की अपेक्षा उतार-चढाव करने की काबिलियत भी अधिक थी। इसके अलावा रफी के गाये गीतों की रेंज भी अधिक है। इसमें किशोर कुमार उन्हें कड़ी टक्कर देते नजर आते हैं लेकिन बीस तो रफी ही नजर आते हैं। जहां तक मुकेश का सवाल है तो उनकी रेंज इन तीनों में सबसे कम है लेकिन दर्द भरे गीतों में मुकेश इन दोनों पर भारी पड़ते हैं।

    मोहम्मद रफी के सदाबहार गीत :

    ओ दुनिया के रखवाले
    ये है बाम्बे मेरी जान
    सर जो तेरा चकराए
    हम किसी से कम नहीं
    चाहे मुझे कोई जंगली कहे
    मै जट यमला पगल
    , चढ़ती जवानी मेरी
    हम काले हुए तो क्या हुआ दिलवाले हैं
    ये हैं इश्क-इश्क
    परदा है परदा
    अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
    नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुठी में क्या है
    चक्के पे चक्का (बच्चों का गीत)
    ये देश हैं वीर जवानो का
    मन तड़पत हरी दर्शन को आज (शास्त्रीय संगीत)
    सावन आए या ना आए.
    मधुबन में राधिका
    , बाबुल की दुआएँ,
    आज मेरी यार की शादी हैं (विवाह गीत),
    चौदहवी का चाँद हो
    , हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं
    , तेरी प्यारी प्यारी सूरत को
    , मेरे महबूब तुझे मेरी मुहबत की कसम,
    बहारो फूल बरसाओ
    , मै गाऊं तुम सो जाओं
    , दिल के झरोखे में,
    बड़ी मुश्किल हैं
    , हमको तो जान से प्यारी हैं,
    परदा हैं परदा, क्या हुआ तेरा वादा,
    आदमी मुसाफिर हैं,
    मेरे दोस्त किस्सा ये
    मैंने पूछा चाँद से.

    संगीत के क्षेत्र में कई गायक आये है और कई गायक आयेंगे लेकिन जो आवाज और गानों में धुन रफी साहब ने दी है उनको भुला पाना नामुमकिन है।

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