Katihar : बिहार के कटिहार जिले में पानी का संकट अब खतरनाक रूप ले चुका है। जिला जल जांच प्रयोगशाला की ताज़ा रिपोर्ट में सभी 16 प्रखंडों के भूजल में आर्सेनिक और आयरन की मात्रा मानक सीमा से कई गुना अधिक पाई गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रदूषण पश्चिम बंगाल के उस जहरीले पानी जैसा है, जो लंबे समय से लोगों के जीवन के लिए घातक साबित हो रहा है।
आधुनिक मशीनों और विशेष रसायनों से हुई जांच में स्पष्ट हुआ कि यह दूषित पानी धीरे-धीरे शरीर में जमा होकर किडनी, लीवर और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। जल संसाधन विभाग और स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्टों में भी कटिहार के अधिकतर इलाकों में पानी को अत्यधिक असुरक्षित बताया गया है।
यह समस्या नई नहीं है, लेकिन कटिहार में इसका फैलाव पहले से अधिक चिंताजनक हो चुका है। बिहार सरकार की 2024-25 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 31 जिलों के 26% ग्रामीण वार्ड आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की समस्या से प्रभावित हैं। कटिहार में ही 4709 वार्डों में आर्सेनिक और 21,709 वार्डों में आयरन की अधिकता दर्ज की गई है। गंगा बेसिन के नजदीक होने के कारण यहां का भूजल पश्चिम बंगाल की तरह तेजी से दूषित हो रहा है। हैंडपंपों पर निर्भरता, रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग और फैक्ट्रियों का अपशिष्ट पानी समस्या को और बढ़ा रहा है।

प्रदूषण का असर सिर्फ पीने के पानी तक सीमित नहीं है। हाल ही में नेचर जर्नल में छपी एक स्टडी में कटिहार सहित छह जिलों की 40 महिलाओं के स्तन दूध में यूरेनियम पाया गया है, जिसमें कटिहार के नमूने में सबसे अधिक मात्रा थी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह यूरेनियम भी भूजल से ही शरीर में जा रहा है और नवजात बच्चों के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि इससे बच्चों में कैंसर का जोखिम 70% तक बढ़ सकता है। केंद्रीय भूजल आयोग की रिपोर्ट भी बिहार को देश के आयरन-प्रभावित छह प्रमुख राज्यों में रखती है।
लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (PHED) के अनुसार, राज्य के 30,000 से अधिक ग्रामीण वार्डों का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। सरकार ‘हर घर नल का जल’ योजना के तहत 83 लाख परिवारों को साफ पानी पहुंचाने पर काम कर रही है, लेकिन कटिहार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में फिल्टर प्लांट लगाना, वैकल्पिक जल स्रोत तलाशना और लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञ फिलहाल लोगों को उबला हुआ पानी, आरओ वाटर इस्तेमाल करने और समय-समय पर पानी की जांच कराने की सलाह दे रहे हैं। चेतावनी दी गई है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो बिहार को भी पश्चिम बंगाल जैसी लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य आपदा का सामना करना पड़ सकता है। सुरक्षित पानी ही असली सुरक्षा है—इसे हल्के में न लें।
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