शिव भक्ति से मिलेगी कष्टों से मुक्ति, जानें कब और कैसे हुई शिव की उत्पत्ति

Joharlive Desk

वेदों में लिखा है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी अवश्य ही होगी। वेदों में ईश्वर या परमात्मा के बारे में कहा गया है कि जो अजन्मा हो अर्थात् जिसने जन्म न लिया हो। प्रकट अर्थात् जो किसी के गर्भ से उत्पन्न न होकर स्वंय उत्पन्न हुआ हो। और अप्रकट का अर्थ है जो स्वयं भी प्रकट न हुआ हो। निराकार जिसका कोई आकार न हो। निर्गुण जिसमें किसी भी तरह के गुण नहीं हैं। निर्विकार यानि जिसमें कोई दोष कोई विकार नहीं है।

शिव के जन्म या उत्तपत्ति के बारे में जानने से पहले जानना होगा कि शिव क्या हैं। लोग यही जानते हैं कि शिव,सदशिव और शंकर,महेश ये सभी नाम एक ही हैं। कोई भी इनमें भेद नहीं कर पाता है। लेकिन इन सबका अस्तित्व अलग-अलग है। जब हम शिव का नाम लेते है तो हम निराकार ईश्वर की बात करते हैं लेकिन जब हम सदाशिव कहते हैं तो हम ईश्वर महान आत्मा की बात करते हैं। भगवान शंकर या महेश माता सती या माता पार्वती के प्राणधार अर्थात् स्वामी हैं। 

यहां पर हम पार्वती या सती नहीं पराशक्ति अंबिका की बात कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि माता अंम्बिका से भगवान शंकर की उत्पत्ति हुई थी। माता अंबिका को प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी कहा गया है। अंबिका सदाशिव द्वारा प्रकट हुई है। उनकी आठ भुजाएं हैं। मां अंबिका अनेकों प्रकार के अस्त्रों को धारण करती हैं। वह सदाशिव की अर्धांगनी दुर्गा हैं। सदाशिव से दुर्गा की उत्पत्ति हुई। 

एक समय सदासिव और दुर्गा को इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की रचना कि जाए जिस पर सृष्टि के निर्माण का कार्यभार सौंप दिया जाए। इसके लिए उन्होंने अपने वामांग अर्थाते बाएं अंग से विष्णु जी को प्रकट किया। पराशक्ति ने ही अपने दाएं अंग से ब्रह्मा को उत्पन्न किया परंतु तत्काल ही उन्होंने उन्हें भगवान विष्णु की नाभि में डाल दिया। इस तरह ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु जी का नाभि से हुई। लेकिन ब्रह्मा जी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे और श्रेष्ठता को लेकर दोनों में युद्ध हो गया।

तभी एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। तब उस दिव्य कालस्वरूप ज्योतिर्लिंग ने कहा कि तुम दोनों पुत्रों ने सृष्टि और पालन नामक दो कर्तव्यों को मुझसे प्राप्त किया है। इसी तरह से मेरे गौरवपूर्ण स्वरूपों रूद्र तथा महेश्वर को मुझसे संहार एवं तिरोभाव अर्थातं (अदृश्य होने का भाव)प्राप्त किया है।लेकिन उन्होनें कभी भी अपने कृत्य को नहीं भुलाया इस कारण उन्हें मेरे समान समानता प्राप्त है। रुद्र और महेश दोनों ही के पास मेरी ही तरह वाहन हैं। इनके अस्त्र भी मेरी ही तरह हैं। 

अर्थात् सदाशिव से दुर्गा का जन्म हुआ, और सदशिव-दुर्गा से ब्रह्मा,विष्णु,रुद्र और महेश्वर की उत्पत्ति हुई। इससे यह सिद्ध होता है कि तीनों देवों की और रुद्र का जन्म सदाशिव और जगतजननी मां दुर्गा से हुआ है।

कालस्वरूप सदाशिव ने शक्ति के साथ एक क्षेत्र का निर्माण किया। जिसका नाम शिवलोक है। यह स्थान कोई और नहीं बल्कि पवित्र क्षेत्र काशी है। काशी को मोक्ष का स्थान माना गया है। यहां पर शक्ति और शिव दोनों पति-पत्नी के रूप में निवास करते हैं। इसी स्थान पर जगतजननी माता से शंकर की उत्पत्ति हुई।