Koderma : छठ महापर्व 25 अक्टूबर से नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। पूरे राज्य में तैयारियां जोरों पर हैं। घरों, घाटों और तालाबों की सफाई चल रही है, बाजारों में छठ सामग्री की दुकानें सज गई हैं। इस पर्व में बांस के सूप और दउरा का खास महत्व है। हालांकि आजकल लोग कांसे, पीतल, चांदी या प्लास्टिक के सूप भी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार बांस के सूप-दउरा को सबसे शुद्ध माना जाता है।
कोडरमा के झुमरीतिलैया नगर परिषद के वार्ड-7 में तुरिया समाज के करीब 40 परिवार पिछले एक महीने से दिन-रात बांस के सूप-दउरा बना रहे हैं। महिलाएं घरों पर इन्हें तैयार करती हैं, जबकि पुरुष आसपास के इलाकों में ब N/A बेचने जाते हैं। समाज की मुस्कान ने बताया, “हमारा परिवार पीढ़ियों से यह काम कर रहा है। लेकिन अब मुनाफा बहुत कम हो गया है। पहले 40-50 रुपये बचत होती थी, अब 10-20 रुपये भी मुश्किल से बचते हैं।” संतोषी देवी ने कहा, “पहले जंगल से बांस आसानी से मिल जाता था, लेकिन वन कानून सख्त होने से अब बांस काटना मुश्किल है।”
ऑनलाइन बाजार में भी बांस की चीजें सस्ती मिलने से स्थानीय कारीगरों की बिक्री घटी है। तुरिया समाज ने सरकार से अपील की है कि इस पारंपरिक शिल्प को बचाने के लिए मदद की जाए और बांस की आसान उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

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