Ranchi : झारखंड के कई विश्वविद्यालयों में प्रमोशन से जुड़ी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। जांच में पता चला है कि प्रयोगशालाओं में काम करने वाले डेमोंस्ट्रेटर (लैब असिस्टेंट) को गलत तरीके से असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर तक बना दिया गया। कुछ मामलों में तो ये लोग विभागाध्यक्ष (HOD) के पद तक पहुंच गए हैं।
जानकारी के मुताबिक, कई डेमोंस्ट्रेटर पहले अनुकंपा के आधार पर रूटीन क्लर्क के रूप में नियुक्त हुए थे। बाद में प्रमोशन पाकर वे डेमोंस्ट्रेटर बने और अब विश्वविद्यालय शिक्षक बन गए। जांच समिति के सदस्यों ने बताया कि अनुकंपा पर नियुक्त नॉन-टीचिंग स्टाफ को किसी भी हालत में शिक्षक नहीं बनाया जा सकता।
जांच में यह भी पाया गया कि कई अभ्यर्थियों के पास नियुक्ति के समय पोस्टग्रेजुएट (PG) की डिग्री तक नहीं थी, जबकि विश्वविद्यालय शिक्षक बनने के लिए यह अनिवार्य है। बाद में डिग्री हासिल कर उन्होंने प्रमोशन ले लिया।

यह मामला रांची यूनिवर्सिटी, विनोबा भावे यूनिवर्सिटी (हजारीबाग), कोल्हान यूनिवर्सिटी (चाईबासा), बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी (धनबाद), नीलांबर-पीतांबर यूनिवर्सिटी (डालटनगंज), सिदो-कान्हू यूनिवर्सिटी (दुमका) और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी (रांची) से जुड़ा हुआ है। इन संस्थानों में 100 से अधिक डेमोंस्ट्रेटरों के प्रमोशन की जांच चल रही है।
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग ने इस जांच की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर शुरू की है। कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया था कि डेमोंस्ट्रेटर को शिक्षक नहीं बनाया जा सकता। इसके बावजूद 2011 में नियम संशोधन के बाद भी विश्वविद्यालयों ने नियमों की अनदेखी कर प्रमोशन दिए।
कमेटी के अनुसार, गलत प्रमोशन से न केवल विश्वविद्यालय के नियमों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि राजकोष पर करोड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ भी पड़ा है। अब इन सभी मामलों की जांच तेज कर दी गई है और दोषियों पर कार्रवाई की तैयारी चल रही है।
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