Palamu : पलामू टाइगर रिजर्व में अब बाघों की सुरक्षा और मूवमेंट पर निगरानी के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। वन विभाग ने बाघों की ट्रैकिंग को अधिक प्रभावी और रियल-टाइम बनाने के लिए रेडियो कॉलरिंग तकनीक को लागू करने का निर्णय लिया है। यह तकनीक न केवल बाघों के संरक्षण को मजबूती देगी, बल्कि जंगल में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों पर भी पैनी नजर रख सकेगी।
क्या है रेडियो कॉलरिंग तकनीक और कैसे करती है काम?
रेडियो कॉलरिंग एक अत्याधुनिक निगरानी प्रणाली है, जिसमें बाघ की गर्दन पर एक विशेष कॉलर लगाया जाता है। इस कॉलर में लगा रेडियो ट्रांसमीटर लगातार सिग्नल भेजता है, जिसे रिसीवर डिवाइस के जरिए रिसर्चर और वन अधिकारी ट्रैक कर सकते हैं।
इस तकनीक की मदद से बाघ की लोकेशन, मूवमेंट और व्यवहार संबंधी गतिविधियों की सटीक जानकारी रियल टाइम में प्राप्त होती है।
AI कैमरे और स्मार्ट निगरानी से बढ़ेगी सुरक्षा
पलामू टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर प्रजेश कांत जैना ने जानकारी दी कि पिछले दो वर्षों में रिजर्व में बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है। ऐसे में उनकी निगरानी और संरक्षण के लिए टेक्नोलॉजी को अपग्रेड किया जा रहा है।
अब तक कैमरा ट्रैप और नाइट विजन कैमरों से निगरानी की जा रही थी, लेकिन जल्द ही इसमें AI आधारित स्मार्ट कैमरे भी जोड़े जाएंगे। इससे बाघों की पहचान, मूवमेंट और अनियमित गतिविधियों को पहचानने में और तेजी आएगी।
अवैध गतिविधियों पर मिलेगी तुरंत सूचना
रेडियो कॉलरिंग की खास बात यह है कि इसे GPS और एक्सेलेरोमीटर जैसे उन्नत उपकरणों से भी जोड़ा जा सकता है। इससे न सिर्फ बाघों के व्यवहार और आवास की विस्तृत जानकारी मिलेगी, बल्कि अगर कोई शिकारी या बाहरी व्यक्ति जंगल में घुसता है तो उसकी लोकेशन भी तुरंत ट्रैक की जा सकेगी।
यह सिस्टम एंट्रूज़न डिटेक्शन में भी कारगर साबित होगा, जिससे अवैध शिकार और अतिक्रमण जैसी घटनाओं पर तुरंत कार्रवाई संभव हो पाएगी।
वन्यजीव संरक्षण को मिलेगी नई दिशा
इस तकनीक के आने से वन अधिकारियों का रिस्पॉन्स टाइम भी काफी कम हो जाएगा, जिससे आपातकालीन स्थितियों में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जा सकेगी। साथ ही, शोधकर्ताओं को बाघों के व्यवहार और जीवनशैली से जुड़ी अहम जानकारियाँ भी प्राप्त होंगी, जो भविष्य में संरक्षण नीति निर्धारण में मदद करेंगी।