Bhagalpur : केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना के निर्णय के बाद देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया है. एक ओर जहां नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसे “समाजवादियों की जीत” बताया. वहीं जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने तेजस्वी पर तीखा पलटवार किया है. भागलपुर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान पीके ने कहा, “तेजस्वी यादव कब से समाजवादी हो गए? उन्हें तो समाजवाद की परिभाषा तक नहीं मालूम. 10 दिन की कोचिंग और सलाहकारों की मदद के बाद भी वे समाजवाद पर बिना देखे 5 लाइन नहीं बोल सकते.” उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत में समाजवाद की परंपरा जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं से जुड़ी रही है, न कि उन नेताओं से जो केवल जाति की राजनीति करते हैं.
जातीय जनगणना को लेकर पीके ने कहा कि जन सुराज हमेशा से ऐसे सर्वेक्षण का समर्थन करता रहा है, जिससे समाज की सच्चाई सामने आए. लेकिन केवल आंकड़े जुटाने से बदलाव नहीं होगा. उन्होंने बिहार में पहले हुई जातीय जनगणना का उदाहरण देते हुए कहा कि “रिपोर्ट से साफ है कि दलित समुदाय के केवल 3 प्रतिशत बच्चे ही 12वीं तक पढ़ पाए हैं, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने शिक्षा सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया.” उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा, “सिर्फ किताब खरीदने से आप विद्वान नहीं बन जाते, उसे पढ़ना और समझना भी पड़ता है. उसी तरह, जातीय जनगणना एक जरिया हो सकता है, लेकिन अगर इसे राजनीतिक हथियार बनाया गया तो इससे कोई सामाजिक सुधार नहीं होगा.”
जातीय जनगणना पर जहां एक ओर राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ लगी है, वहीं प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार इसके क्रियान्वयन और परिणामों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि सरकार इस कदम को समाजिक न्याय के औजार की तरह उपयोग करती है या यह केवल चुनावी मुद्दा बनकर रह जाता है.
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