Johar Live Desk : अमेरिका के सबसे बड़े व्यापार संगठन यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित $100,000 H-1B वीजा फीस को लेकर वॉशिंगटन की जिला अदालत में मुकदमा दायर किया है। संगठन ने इस शुल्क को “अवैध और असंवैधानिक” करार दिया है।
चैंबर का कहना है कि इस भारी शुल्क से खासकर तकनीकी और इनोवेशन आधारित कंपनियों को नुकसान होगा, जो विदेशी कुशल कर्मचारियों पर निर्भर हैं। उनका तर्क है कि इससे कंपनियों की लागत बढ़ेगी और वे कम लोगों को नौकरी देने को मजबूर होंगी, जबकि अमेरिका में पहले से ही कई खास कौशल वाले कर्मचारियों की कमी है।
चैंबर ने ट्रंप द्वारा 19 सितंबर को हस्ताक्षरित राष्ट्रपति आदेश को भी अवैध बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के पास सीमित अधिकार हैं और वे कांग्रेस के बनाए कानूनों के खिलाफ जाकर नई नीतियां नहीं बना सकते।

चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यकारी उपाध्यक्ष नील ब्रैडली ने कहा, “यह शुल्क अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक टैलेंट से दूर कर देगा। हमारी अर्थव्यवस्था को ज्यादा कुशल लोगों की जरूरत है, न कि कम की।”
इससे पहले, 3 अक्टूबर को यूनियनों, शिक्षाविदों और धार्मिक संगठनों ने भी कैलिफोर्निया की अदालत में ट्रंप प्रशासन के खिलाफ याचिका दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह नीति H-1B वीजा से होने वाले आर्थिक लाभों को नजरअंदाज करती है।
हालांकि, वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने इस कदम का बचाव किया और कहा कि इसका मकसद कंपनियों को अमेरिकी स्नातकों को प्रशिक्षित करने की ओर प्रेरित करना है।
ट्रंप प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह फीस सिर्फ नई H-1B वीजा अर्जी पर लागू होगी, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं। गौर करने वाली बात यह है कि 2024 में जारी हुए H-1B वीजा में 70% हिस्सेदारी भारतीय पेशेवरों की थी, जिससे इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ने की आशंका है।