Ranchi : कुड़मी समाज की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के खिलाफ झारखंड के आदिवासी संगठन एकजुट हो रहे हैं। सोमवार को आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से राजभवन में मुलाकात की। उन्होंने कुड़मी समाज की मांग को बेबुनियाद बताते हुए एक ज्ञापन सौंपा और आंदोलन से हुई आर्थिक क्षति की वसूली का सुझाव दिया।
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— Zee Bihar Jharkhand (@ZeeBiharNews) September 22, 2025
ज्ञापन में क्या कहा गया?
आदिवासी संगठनों ने झारखंड जनजाति शोध संस्थान (टीआरआई) के 2004 के शोध पत्र ‘Ethnographic Study Report’ का हवाला दिया। इसमें काका कालेलकर कमेटी (1955) और लोकुर कमेटी (1965) के मानदंडों के आधार पर कुड़मी समाज के दावे को खारिज किया गया है। ज्ञापन में कहा गया कि भारतीय संसद और झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा की विधानसभाओं में कई बार यह मांग उठी, लेकिन संवैधानिक संस्थाओं ने इसे बार-बार निरस्त किया। संगठनों ने आरोप लगाया कि कुड़मी समाज अब राजनीतिक दबाव की रणनीति अपना रहा है। 2022 के आंदोलन से लाखों यात्रियों को परेशानी हुई और रेलवे को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
तथ्यों के साथ दावे पर सवाल
ज्ञापन के साथ कई दस्तावेज संलग्न किए गए, जिनमें इंद्रदेव सिंह की किताब ‘कूर्मवंशी क्षत्रिय का इतिहास’, के.एस. सिंह की ‘ट्राइबल मूवमेंट ऑफ इंडिया’, बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर संथाल परगना (1910), कुर्मी क्षत्रिय हिंदू सेंसस रिपोर्ट (1921) और 2021 में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद द्वारा मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र शामिल है। इनसे कुड़मी समाज के आदिवासी होने के दावे को चुनौती दी गई।
आदिवासी नेताओं की दलील
मुलाकात के बाद अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की गीताश्री उरांव, आदिवासी महासभा के संयोजक देव कुमार धान और आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम साही मुंडा ने मीडिया से बात की। गीताश्री उरांव ने कहा कि राज्यपाल ने बताया कि तीन दशक के संसदीय अनुभव में उन्होंने कभी कुड़मी समाज की मांग को जोर-शोर से उठते नहीं देखा। प्रेम साही मुंडा ने कहा, “केंद्र सरकार के 18 मानदंडों में से कुड़मी समाज कोई भी पूरा नहीं करता। टीआरआई ने उनकी मांग खारिज की है। इनका आदिवासी गोत्र या भाषाओं से कोई संबंध नहीं है।”
आंदोलन का प्रभाव
20 सितंबर से शुरू हुए कुड़मी समाज के रेल रोको आंदोलन से झारखंड, बंगाल और ओडिशा में ट्रेन सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी कि कुड़मी समाज की मांग पूरी होने से असली आदिवासियों के हितों को नुकसान होगा। वे इस मुद्दे पर आगे भी विरोध जारी रखने की बात कह रहे हैं।