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    Home»शिक्षा»यूएसबी, ऑप्टिक फाइबर समेत वो खास 08 आविष्कार जो भारत ने दुनिया को दिए
    शिक्षा

    यूएसबी, ऑप्टिक फाइबर समेत वो खास 08 आविष्कार जो भारत ने दुनिया को दिए

    Team JoharBy Team JoharJune 25, 2021No Comments5 Mins Read
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    दुनिया की नामी आईटी कंपनियों की बागडोर भारतीयों के हाथ में हैं. ऐसा नहीं है कि भारत के पास इतराने के लिए सिर्फ आईटी होनहार ही हैं. सदियों से भारत कुछ ऐसे आविष्कार करता आ रहा है जो गर्व करने लायक हैं. अगर ये आविष्कार नहीं किए गए होते तो दुनिया के बहुत से काम अटके रहते. ये वो आविष्कार हैं जिसका लोहा दुनिया मानती है

    ज़ीरो –

    भारत में 7वीं शताब्दी में खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ने शून्य का रास्ता बनाया. गणित में शून्य ने न सिर्फ ये दिखाया कि कुछ नहीं होने का भी एक अर्थ है, बल्कि उसने अन्य अंकों के गुणा भाग को भी आसान कर दिया. आप उसे जोड़, घटाने, गुणा करने में इस्तेमाल कर सकते हैं. शून्य का महत्व आप भारतीय दर्शनशास्त्र में भी देख सकते हैं जिसे निर्वाण भी कहते हैं. कैलकुलस, जटिल समीकरण और कंप्यूटर के आविष्कार में जीरो ने अहम रोल निभाया.

    योग –

    अब इसके बारे में क्या बताएं. भारत से निकलकर योग ने दुनिया भर में जगह बना ली है. भारतीय इतिहास में वैदिक काल से पहले से योग को जोड़ा जाता है और बौद्ध, हिंदु और जैन धर्म से इसका जुड़ाव काफी गहरा है. स्वामी विवेकानंद को योग के पश्चिम से मिलन का श्रेय दिया जाता है.

    शैंपू –

    घने घने काले बालों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला शैंपू. यह भारत की देन है. 15वीं शताब्दी में भारत में प्राकृतिक तेल, आमला और अन्य जड़ी बूटी को मिलाकर शैंपू तैयार किया गया था. हालांकि उस वक्त शैंपू शब्द का इस्तेमाल जाहिर तौर पर नहीं किया गया होगा. बताया जाता है कि शैंपू शब्द, चंपो से निकला है जिसका मतलब मालिश है. बाद में ब्रिटिश व्यापारी यूरोप में शैंपू को लेकर गए. हालांकि यूरोप की आम जनता तक शैंपू को पहुंचने में एक लंबा अरसा लग गया. शायद यही वजह है कि भारत में लंबे बालों को रखना अभी भी अच्छा माना जाता है. हो भी क्यों न, जहां शैंपू का आविष्कार हुआ हो, वहां ऐसे शौक रखना लाज़िमी है.

    बटन –

    शुरू शुरू में बटन लगाने के कम और सजाने के ज्यादा काम आता था. सिंधु घाटी सभ्यता में बटन के पहले पहल इस्तेमाल किए जाने के सबूत मिले हैं. करीब 5 हजार साल पुराने ये बटन एक उभरे हुए सीप से बनते थे. पहले के बटन कभी भी एक लाइन से नहीं लगाए जाते थे. सजावट के तौर पर एक बटन का इस्तेमाल किया जाता था. कामकाजी बटन का इस्तेमाल काफी बाद में 13वीं शताब्दी में जर्मनी में किया गया.

    फ्लश टॉयलेट –

    पुरातत्व संबंधी सबूतों पर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व से 1300 ईसापूर्व) में फ्लश टॉयलेट का इस्तेमाल सबसे पहले किया गया. रोमन शासन काल में भी इसी तरह के टॉयलेट का पहली से पांचवी शताब्दी ईस्वी तक इस्तेमाल किया गया है. हालांकि ये फ्लश आधुनिक वक्त में देखे जाने वाले फ्लश टॉयलेट जैसा नहीं था लेकिन इसमें तेजी से पानी बहकर मल को साफ करने का सिस्टम था. रोमन शासन के गिरने के बाद इस सिस्टम का इस्तेमाल भी बंद कर दिया गया. कांस्य युग की सभ्यता जहां अब आधुनिक कश्मीर है, वहां के पुराने घरों में भी मल निस्तारण के लिए इस तरह की पद्धति को देखा गया है.

    रेडियो ब्रॉडकास्टिंग –

    भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस को रेडियो प्रसारण का श्रेय जाता है. नोबल पुरस्कार विजेता गुग्लिएल्मो मार्कोनी को रेडियो प्रसारण का श्रेय जाता है लेकिन जैसा कि फिजिक्ल के लिए 1978 में नोबल जीत चुके सर नैविले मोट कहते हैं – बोस अपने वक्त से 60 साल आगे थे. मार्कोनी से काफी पहले बोस ने मिलीमीटर रेंज माइक्रोवेव तरंग का इस्तेमाल बारूद दूरी पर प्रज्वलित करने और घंटी बजाने में किया.

    फाइबर ऑपटिक्स –

    इंटरनेट पर आप जो कुछ भी देख, समझ या खरीद पा रहे हैं, ये फाइबर ऑपटिक्स के बगैर कहां मुमकिन होता. फाइबर ऑपटिक्स दरअसल कांच या किसी पारदर्शी सॉडिल के लचीले टुकड़े होते हैं जो सिर के बाल जितने पतले होते हैं. दूरसंचार क्रांति लाने में इसका अहम रोल है. यहां तक की शरीर की अंदरूनी जांच में भी फाइबर ऑपटिक्स बहुत काम आता है. पंजाब के नरिंदर कपानी को फाइबर ऑपटिक्स का जनक कहा जाता है. 1955-1965 के बीच भौतिकशास्त्री कपानी ने ऐसे कई तकनीकी पेपर तैयार किए जिन्हें दुनिया के अहम जर्नल में जगह मिली. 1960 में साइंटिफिक अमेरिकन में छपे उनके एक पेपर ने फाइबर ऑपटिक्स नाम रखने में मदद की और इस तरह की रिचर्स करने के लिए कपानी को श्रेय दिया गया.

    यूएसबी –

    यूएसबी न होती तो आप अपने दोस्तों को किलो भरकर फिल्में और गाने कैसे दे पाते. यूनिवर्सल सीरियल बस यानि यूएसबी पोर्ट ने हमारी जिंदगी काफी आसान कर दी. पहले जो हम सीडी उठाए घूमते थे, पेन ड्राइव ने वो भार कम कर दिया. इसका श्रेय जाता है अजय भट्ट को. 90 के दशक में भट्ट और उनकी टीम ने एक ऐसे उपकरण पर काम करना शुरू किया जो दशक के अंत तक कम्प्यूटर कनेक्टिविटी के लिए एक अहम साधन बन गया था. भट्ट को 2009 में इंटेल के विज्ञापन में देखा गया, साथ ही उन्हें 2013 में गैर यूरोपीय देशों की श्रेणी में यूरोपियन इन्वेंटर अवॉर्ड दिया गया.

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