Ranchi : झारखंड के विश्वविद्यालयों में पीएचडी शोध कार्यों में हो रही भारी अनियमितताओं को लेकर आदिवासी भाषा एवं संस्कृति से जुड़े कार्यकर्ता देवकुमार धान ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि मुण्डारी, नागपुरी, करमाली, पपरगनिया, कुड़ुख, संथाली, खड़िया जैसी आदिवासी भाषाओं में शोध कार्य को लेकर बड़ी धांधली हो रही है। देवकुमार धान ने आरोप लगाया है कि जिन शिक्षकों के पास पीएचडी की उपाधि तक नहीं है, उन्हें शोध निर्देशक (गाइड) बना दिया गया है। इसके अलावा एक भाषा के शिक्षक, दूसरी भाषा के शोध निदेशक बने हुए हैं, जो UGC के 7 नवम्बर 2022 के पीएचडी रेगुलेशन के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि यह पूरा खेल पूर्व कुलपति डॉ. अजीत कुमार सिन्हा और संकाय प्रमुख डॉ. अर्चना दुबे की छत्रछाया में चल रहा है। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासी भाषाओं और साहित्य को कमजोर करने की एक साजिश है।
उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि…
- नवम्बर 2022 के UGC रेगुलेशन का सख्ती से पालन किया जाए,
- जिन शिक्षकों के पास पीएचडी की डिग्री नहीं है, उनका पीएचडी शोध निर्देशन पंजीयन रद्द किया जाए,
- जो शिक्षक अपने विभाग की भाषा के बजाय अन्य भाषाओं में गाइड बने हैं, उनका भी पंजीयन रद्द हो।
देवकुमार धान ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो यह न केवल विश्वविद्यालय की शैक्षणिक साख को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि आदिवासी समाज के लिए एक बड़ी सांस्कृतिक क्षति भी होगी।
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