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    Home»झारखंड»रांची»आदिवासियों की आर्थिक व्यवस्था प्री हिस्टोरिक है : राजीव अरूण एक्का
    रांची

    आदिवासियों की आर्थिक व्यवस्था प्री हिस्टोरिक है : राजीव अरूण एक्का

    Team JoharBy Team JoharSeptember 7, 2023Updated:September 8, 2023No Comments3 Mins Read
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    रांची: आदिवासी आर्थिक व्यवस्था बिना पैसों की है मतलब इसमें पैसों को महत्व नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि भारत सहित विश्व के कई देशों में आदिवासी मुख्यधारा के समाज , की संस्कृति से प्रभावित हो रहे हैं इसलिए जरूरी है कि आदिवासी अपनी संस्कृति व जीवनशैली से जुड़े रहे।
    उक्त बातें आदिवासी पिछड़ा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव राजीव अरूण एक्का ने कही। वे टीआरआई मोरहाबादी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। सेमिनार का विषय है आदिवासी आर्थिक व्यवस्था। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की आर्थिक व्यवस्था प्री हिस्टोरिक है. इसे आप उनके जीवन शैली में देख सकते हैं।

    आदिवासी आर्थिक व्यवस्था दुनिया के लिए एक मॉडल हो सकती है : रणेंद्र

    टीआरआई के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि मुक्त बाजार की अवधारणा पर टिकी दुनिया आज एक ही रास्ते पर जा रही है। फिर वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था क्या हो सकती है? पूर्व ब्रटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर व बाद में अमेरिका राष्ट्रपति रीगन के समय ही बाजार और पूंजीवादी की वह व्यवस्था शुरू हुई जिसे हम आज देख रहे हैं। यह व्यवस्था समाज की परंपरागत अवधारणा को खारिज करता है। इस अवधारणा का प्रतिकार आदिवासी समाज और उनकी आर्थिक व्यवस्था ही कर सकती है। आदिवासी आर्थिक व्यवस्था दुनिया के लिए एक मॉडल हो सकती है क्योंकि वह प्रकृति से उतना ही लेते हैं जितना जरूरत है उनमें संग्रह करने की प्रवृत्ति नहीं है।
    पुणे से आए आशीष कोठारी ने कहा कि आदिवासी अर्थव्यवस्था पर जब बात हो तो उसमें आदिवासी प्रतिनिधि भी होने चाहिए। कहा के आदिवासी आर्थिक व्यवस्था पूंजीवाद का विकल्प हो सकता है।

    नव उदारवाद पूंजीवादी व्यवस्था का ही एडवांस्ड वर्जन है: डॉ जया

    दिल्ली से आई अर्थशास्त्री डॉ जया मेहता ने कहा कि नव उदारवाद पूंजीवादी व्यवस्था का ही एडवांस्ड वर्जन है। हमें उत्पाद सेवाएं पूंजी दुनिया के सभी सीमाओं को लांघकर पहुंच रही है। 2008 के बाद से अमेरिका व यूरोप आर्थिक क्राइसिस से नहीं ऊपर पाए हैं और इसलिए दुनिया में एक नई शुरुआत हुई है जिसमें डॉलर आधारित व्यवस्था को छोड़कर दूसरे विकल्पों पर दुनिया भर के देश काम कर रहे हैं। उन्होंने नवउदारवाद को भी घातक बताते हुए कहा कि इससे आदिवासी समुदाय को आघात पहुंचा है।
    बिनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति प्रोफेसर रमेश शरण ने कहा कि , वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था का मानक खुशी आधारित होना चाहिए। वर्तमान में जो पूंजीवादी व्यवस्था है वह इंसान को इंसान नहीं समझती दुनिया को आज आदिवासी समुदाय से सीखना चाहिए कि जीवन कैसे जीए।

    बाजार का भी बाजारीकरण हो गया: अरूण कुमार

    जेएनयू के पूर्व प्राध्यापक अरूण कुमार ने कहा कि आज बाजार का भी बाजारीकरण हो गया हैं। यह व्यवस्था पूंजीपति और उपभोक्ता के द्वारा संचालित होती है। एक वर्ग है जो कुछ भी खरीद सकता है और एक वर्ग ऐसा है जिसे दो समय का खाना भी नसीब नहीं हो रहा। कार्यरक्रम में धन्यवाद ज्ञापन आदिवासी कल्याण आयुक्त अजय नाथ झा ने किया. बाद के सत्रों में आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न न पहलुओं पर विमर्श किया गया।

    अल्पसंख्यक आदिवासी आदिवासी पिछड़ा आर्थिक व्यवस्था कल्याण
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