Pakur: पाकुड़ में भगवान मदनमोहन की रथ यात्रा के साथ ऐतिहासिक रथमेला की परंपरा एक बार फिर शुरू हुई। यह परंपरा वर्ष 1697 से चली आ रही है, जब पाकुड़ राज के प्रथम राजा पृथ्वी चंद्र शाही ने इसकी शुरुआत की थी।
राजा के कुलदेवता भगवान मदनमोहन और रुक्मिणी माता थे। उस समय रथ नीम की लकड़ी से बनता था और मेले में आदिवासी एवं पहाड़िया समुदाय की बड़ी भागीदारी होती थी। कंचनगढ़ स्थित राजबाड़ी से शुरू हुआ यह आयोजन, विद्रोह और स्थान परिवर्तन के बावजूद कभी नहीं रुका।
बाद में राजा सितेश चंद्र शाही मोहनपुर चले गए और वहीं रथयात्रा का आयोजन शुरू हुआ। तृतीय राजा गोपीनाथ पांडेय के समय 1856 में रथयात्रा वापस पाकुड़ आई और राजाबाड़ी मैदान से मेला लगना शुरू हुआ।
1921 में राजा कुमार कालीदास पांडेय ने इसे राजशाही रीति-रिवाजों के साथ और भव्य स्वरूप दिया। पहले रथ रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम तक जाता था, लेकिन अब यह भगतपाड़ा बिल्टू स्कूल तक ले जाया जाता है और फिर वापस राजबाड़ी लाया जाता है।
एसपी निधि द्विवेदी ने पूजा-अर्चना कर लोगों को भाईचारे के साथ मेला मनाने का संदेश दिया। सुरक्षा को लेकर चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया है। छोटी राजबाड़ी मैदान में भी भव्य मेले का आयोजन हो रहा है।
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