Johar Live Desk : भारत में 2020 में हर एक हजार प्रसव में से 6.548 बच्चों का जन्म मृत हुआ, जिसमें शहरी माताओं में यह दर ग्रामीण माताओं की तुलना में अधिक पाई गई। यह खुलासा गोरखपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और नई दिल्ली के भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में हुआ। अध्ययन के अनुसार, उत्तरी और मध्य भारत में मृत जन्म के मामले सबसे अधिक हैं, खासकर चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में। यह निष्कर्ष ‘द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
एनीमिया और पोषण की कमी प्रमुख कारण
शोध में पाया गया कि गर्भवती महिलाओं में एनीमिया (आयरन की कमी), कम वजन, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और संक्रमण जैसे कारक मृत जन्म के जोखिम को बढ़ाते हैं। समय से पहले जन्म और प्रसव के दौरान ऑक्सीजन की कमी या अन्य जटिलताएं भी इसके प्रमुख कारण हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) और 2020 की नागरिक पंजीकरण प्रणाली के डेटा के विश्लेषण से यह भी पता चला कि मृत जन्म की दर पुरुष भ्रूणों में थोड़ी अधिक है, जो उनकी जैविक संवेदनशीलता को दर्शाता है।
दक्षिण भारत में स्थिति बेहतर
अध्ययन में बताया गया कि तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में सिजेरियन (सी-सेक्शन) प्रसव और स्वच्छ मासिक धर्म प्रथाओं के कारण मृत जन्म की दर अपेक्षाकृत कम है। NFHS-5 के अनुसार, 2019-20 में दक्षिण भारत में सी-सेक्शन प्रसव की दर लगभग 45% थी।
आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां जरूरी
असम, मेघालय, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के आंकड़ों से पता चला कि गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार चिकित्सकीय जांच और आयरन व फोलिक एसिड का नियमित सेवन मृत जन्म के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर जोर
शोधकर्ताओं ने बताया कि मृत जन्म की उच्च दर उन क्षेत्रों में देखी गई, जहां गर्भवती महिलाएं एनीमिक थीं, प्रसव अधिकतर सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में हो रहे थे और महिलाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। शोध में यह भी उल्लेख किया गया कि लिंग-विशिष्ट मृत जन्म दरों में कोई खास असमानता नहीं देखी गई।
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