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    Home»जोहार ब्रेकिंग»झारखंड का पहला एलोवेरा विलेज, ग्रामीणों की मेहनत से बना आत्मनिर्भर
    जोहार ब्रेकिंग

    झारखंड का पहला एलोवेरा विलेज, ग्रामीणों की मेहनत से बना आत्मनिर्भर

    Team JoharBy Team JoharAugust 24, 2020No Comments4 Mins Read
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    Joharlive Team

    रांची। झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर नगरी प्रखंड के देवरी पंचायत के लोगों ने एलोवेरा की खेती कर खुद को आत्मनिर्भर बनाने की पहल बहुत पहले ही शुरू कर दी थी। साथ ही इस कोरोना संकट के दौरान इसकी उपयोगिता को बढ़ाते हुए उद्योगपतियों को भी आकर्षित किया है। गांव के आसपास के लोगों को इसके प्रति जागरूक किया गया है।

    इन सारे प्रयासों के बाद देवरी गांव झारखंड का पहला एलोवेरा विलेज बन चुका है।

    लॉकडाउन के बाद देश की अर्थव्यवस्था को दिशा देने में गांव की भूमिका अहम माना जा रहा है. ऐसे में राजधानी रांची का यह गांव उद्योगपतियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है।

    रांची जिले के नगडी प्रखंड का देवरी गांव राज्य के एकमात्र एलोवेरा विलेज के रूप में विकसित हुआ है। दो वर्ष पहले बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के तहत संचालित आइसीएआर-टीएसपी औषधीय पौध परियोजना के तहत डॉ कौशल कुमार के मार्गदर्शन में गांव में एलोवेरा विलेज स्थापित करने की पहल की गई थी।

    गांव की मुखिया संग ग्रामीणों की मेहनत लाई रंग
    इसके लिए गांव की महिला मुखिया व कृषक मंजू कच्छप ने काफी मेहनत की और लोगों को जागृत करने का काम किया। मंजू कच्छप के नेतृत्व में गांव के करीब 35 जनजातीय लोगों को बीएयू की तरफ से प्रशिक्षण दिया गया।

    इसके साथ ही गांव में एक ग्रीन हाउस और लाभुकों को जैविक खाद तथा गांव में करीब छह हजार एलोवेरा के पौधों का वितरण किया गया था. इसमें बीएयू के वानिकी इन हर्बल रिसोर्स टेक्‍नोलॉजी के छात्र-छात्राओं की सराहनीय भूमिका रही। वे समय-समय पर गांव में जाकर लोगों की समस्याओं को दूर करते रहे।

    लोगों के आय में हुई वृद्धि
    इस गांव के लोगों की माने तो पहले इसकी खेती शुरू करने में काफी डर लग रहा था, लेकिन हिम्मत कर के लगाए जिससे की काफी लाभ मिला है,कम मेहनत में अधिक मुनाफा इस खेती से हो रहा है।

    एलोवेरा पौधा तैयार होने में करीब 18 माह का समय लगता है। एक-एक पत्तियों का वजन औसतन आधा किलो के करीब होता है. सबसे पहले ग्रामीणों के उत्पादों को विश्वविद्यालय ने ही खरीद कर दुमका जिले के विभिन्न गांवों में वितरित किया। 4-5 महीनों में गांव वालों ने अबतक करीब दो हजार पौधों की बिक्री कर अतिरिक्त आय की है।

    ग्रामीणों द्वारा पॉली बैग में प्रति पौधा 25-30 रुपये तथा बिना पोली बैग का 15-20 रुपये में बेचा जाता है। इसकी खेती से लोगों की आमदनी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसके बाद आसपास के ग्रामीण भी इसकी खेती में रुचि लेकर लाभ ले रहे हैं।

    पिछले कुछ दिनों से गांव में आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाने वाली कई आयुर्वेद की कंपनियों ने गांव का दौरा किया है। इसके साथ ही सीधे ग्रामीणों से व्यापार का प्रस्ताव दिया है। गांव की मुखिया की ओर से किसानों की मदद के लिए कुछ सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) भी बनाया गया है।

    किसान कंपनियों के साथ अपने एसएचजी की मदद से व्यापार कर रहे हैं। वर्तमान में गांव में एक सौ किलो के आसपास एलोवेरा का पत्ता और एक हजार पॉली बैग बिक्री हेतु उपलब्ध है। औद्योगिक कंपनियों को एक साथ इतना कच्चा माल शायद ही किसी एक स्थान पर मिलता है। इसलिए वे मुंहमांगी कीमत भी देने को तैयार हैं। कोलकाता और हजारीबाग से आ रहा है डिमांड..

    हैंड सेनिटाइजर बनाने में किया जा रहा इस्तेमाल
    कोरोना संकट की घडी में एलोवेरा की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए एक तिहाई एलोवेरा जेल, दो तिहाई रुब्बिंग आइसोप्रोपाइल अल्कोहल को मिश्रित कर एक चम्मच सुगंधित तेल से कम कीमत पर सेनेटाईजर बनाया जाता है।

    ऐसे में रांची और आसपास की कई केमिकल कंपनियां गांव के लोगों के साथ दो साल का अनुबंध तक करने के लिए तैयार है।

    एलोवेरा औषधीय पौधे के रूप में विश्व विख्यात है
    बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वन उत्पाद और उपयोग विभाग, वानिकी संकाय के हेड डॉक्टर कौशल की मानें तो एलोवेरा को घृत कुमारी या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। यह औषधीय पौधे के रूप में विश्व विख्यात है।

    इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है. इसके अर्क का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन और त्वचा क्रीम, मधुमेह के इलाज, रक्त शुद्धि, मानव रक्त में लिपिड स्तर को घटाने किया जाता है। इसके पौधे में मौजूद यौगिक पॉलीफेनोल्स की वजह से यह त्वचा और बालों की गुणवत्ता में सुधार के उपयोग में लाया जाता है। अगर भारत मे आयुर्वेद को बढ़ावा देना है तो हर्बल खेती को बढ़ावा देना होगा।

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