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    Home»जोहार ब्रेकिंग»झारखंड : अलग राज्य बनने के बाद अभी तक किसी दल को नहीं मिला स्पष्ट बहुमत, क्या जनता इस बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देगी
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    झारखंड : अलग राज्य बनने के बाद अभी तक किसी दल को नहीं मिला स्पष्ट बहुमत, क्या जनता इस बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देगी

    Team JoharBy Team JoharNovember 2, 2019No Comments4 Mins Read
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    JoharLive Team

    रांची । झारखंड में कुल 81 विधानसभा सीटें हैं और राज्‍य की विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2020 को पूरा हो रहा है। इससे पहले नई सरकार का गठन होना है। इस बीच आज विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस बार राज्य की जनता किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देगी? यह सवाल इसलिए महत्व का है कि जबसे एक राज्य के तौर पर झारखंड का गठन हुआ है तबसे अब तक किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है।

    पिछले 20 सालों के राजनीतिक इतिहास में इस छोटे से राज्य में उठा-पटक और जोड़-तोड़ की राजनीति ही देखने को मिली। हांलाकि इस बार भाजपा ने रघुवर दास के नेतृत्व में 5 साल तक स्थिर सरकार दिया लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा की झोली में 37 सीट ही डाली थी। सहयोगी आजसू को को पांच और बाद में झाविमो के छह विधायक टूट कर भाजपा में शामिल हो गये तो उनकी संख्या बहुमत की हो गयी। इस बार भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से रघुवर दास के नेतृत्व में 65 प्लस के नारे के साथ मैदान में है। जनता का फैसला 23 दिसम्बर को सामने आ जायेगा।

    साल 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 31.3 फीसदी मतों के साथ 37 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थी। उसकी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) 3.7 प्रतिशत मतों के साथ पांच सीटों पर विजयी हुई थी। इसके अलावा झारखंड मुक्‍त‍ि मोर्चा (झामुमो) 20.4 फीसदी मतों के साथ 19 सीटें, कांग्रेस 10.5 फीसदी मतों के साथ सात सीटें और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) ने 10 प्रतिशत वोटों के साथ आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि, चुनाव के बाद जेवीएम के सत्येंद्र तिवारी, रणधीर सिंह, अमर बाउरी, नवीन जायसवाल, आलोक चौरसिया समेत छह विधायक भाजपा शामिल हो गए थे। इसके अलावा विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पिछले महीने झाविमो के एक और विधायक प्रकाश राम ने भी भाजपा का दामन थाम लिया था। सिर्फ एक विधायक प्रदीप यादव पार्टी में बच गये हैं लेकिन दुष्कर्म का आरोप लगने के बाद झाविमो ने उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया है।

    उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 में से 11 सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई हैं। एक सीट उसकी सहयोगी आजसू को मिली थी। झामुमो और कांग्रेस के हिस्से 1-1 सीट आई थी जबकि 2014 के चुनाव में भाजपा ने अकेले 12 सीटें जीती थीं।

    आजसू ने मांगी 19 सीटें, अभी तक नहीं हुआ फैसला

    चुनाव की तिथियों की घोषणा के साथ झारखंड में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। भाजपा ने इस बार राज्‍य में मिशन 65 प्लस का टारगेट रखा है और जोरशोर से चुनाव की तैयारी में लग गई है। इसके साथ ही अगर सूत्रों की मानें तो आजसू ने भाजपा से 19 सीटों की मांग की है। हालांकि अभी इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा है कि आजसू को पिछले चुनाव के करीब ही सीटें मिलेंगी। उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में भाजपा ने आजसू के लिए 8 सीटें छोड़ी थी।

    झाविमो बाहर, भाजपा के खिलाफ झामुमो-कांग्रेस का महागठबंधन

    एनडीए के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव लड़ेगा। झामुमो 43 से 45, कांग्रेस 25 से 27, राजद और वामदल 5-5 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी किसी भी कीमत पर झामुमो नेता हेमंत सोरेन को महागठबंधन का नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इस कारण झाविमो इस महागठबंधन से अभी बाहर है। हालांकि मरांडी अपनी पार्टी के लिए कम से कम 22 सीटें चाहते थे लेकिन झामुमो और कांग्रेस उन्हें 10 से 12 सीटें देने को ही तैयार थी। इसके चलते झाविमो ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है।

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