Jamshedpur : कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) के संस्थापक सदस्य और पूर्व विधायक बास्ता सोरेन की बीती देर रात जमशेदपुर में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे और पिछले 15 वर्षों से कैंसर से पीड़ित थे। इलाज के दौरान रात करीब 1 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। आज यानी बुधवार को उनका पार्थिव शरीर घाटशिला लाया गया, जहां उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए।
सबसे पहले ICC वर्कर्स यूनियन कार्यालय में यूनियन के पदाधिकारियों और सदस्यों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इसके बाद उनका शव घाटशिला प्रखंड के पैतृक गांव झापडीशोल लाया गया। गांव में आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता भी उनके अंतिम दर्शन को पहुंचे।
अंतिम संस्कार में शामिल लोग
उनका अंतिम संस्कार संथाल रीति-रिवाजों के साथ गांव में ही किया गया। इस मौके पर भाजपा नेत्री और पुत्रवधू डॉ. सुनिता देवदूत सोरेन, पुत्री महुआ सोरेन, मौसमी सोरेन, डॉ. माधुरी सोरेन सहित गणेश मुर्मू, मंगल मुर्मू, सिदो राम मुर्मू, पीतांबर सोरेन, सुरेंद्रनाथ सोरेन, चंदाई हेंब्रम और शाहिद जैसे अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
वामपंथी आंदोलन में निभाई अहम भूमिका
बास्ता सोरेन ने ऐसे समय में वामपंथी संगठन का गठन किया, जब तत्कालीन बिहार सरकार ने इन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रखा था। जंगल में रहकर उन्होंने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष किया और संगठन का विस्तार किया। सीपीआई नेता दुलाल चंद्र हांसदा के अनुसार, उन्हें इस दिशा में प्रेरणा घाटशिला के जगदीश चंद्र उच्च विद्यालय के शिक्षक और कोलकाता निवासी अमूल्य चंद्र से मिली थी।
राजनीतिक सफर
बास्ता सोरेन ने वर्ष 1962 में सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ा और झारखंड पार्टी के विधायक श्याम चरण मुर्मू को पराजित कर विधायक बने। वे 1967 तक विधायक रहे। इसके अलावा, वे 1997 से 2010 तक काकड़ीशोल पंचायत के मुखिया भी रहे। उन्होंने पूर्व IAS अधिकारी बीडी शर्मा के साथ मिलकर माझी परगना महाल की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
समाज को दिया एक मजबूत नेतृत्व
बास्ता सोरेन अपने पीछे दो पुत्र, तीन पुत्रियां और नाती-पोतों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनका जीवन आदिवासी समाज के संघर्षों और नेतृत्व का प्रतीक रहा है। उनके निधन से राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में एक युग का अंत हो गया है।
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