Ranchi: झारखंड, बंगाल और ओडिशा में एक बार फिर कुड़मी समाज ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा पाने के लिए आंदोलन छेड़ने की तैयारी कर ली है। साथ ही कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भी ज़ोर पकड़ रही है। दूसरी ओर सरना धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने की मांग पर भी राज्य की राजनीति गरमा गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने साफ शब्दों में कहा है “सरना कोड नहीं तो जनगणना नहीं।”
इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार को घेरा है। लेकिन अब कुड़मी समाज की बढ़ती सक्रियता ने सरकार पर नया दबाव बना दिया है। टोटेमिक कुड़मी/कुरमी विकास मोर्चा के अध्यक्ष शीतल ओहदार के नेतृत्व में कुड़मी संगठनों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन और झारखंड के 11 जिलों में सम्मेलन करने की योजना तैयार की है।
कुड़मी समाज की तीन मुख्य मांगें—
1. ST दर्जा:
कुड़मी समाज का दावा है कि 1913 और 1931 के ब्रिटिश गजट में उन्हें आदिवासी माना गया था। आज़ादी के बाद यह दर्जा हटा लिया गया जिसे वे ऐतिहासिक भूल मानते हैं।
2. कुरमाली भाषा को संवैधानिक मान्यता:
समाज चाहता है कि कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि इसे शैक्षणिक और प्रशासनिक स्तर पर बढ़ावा मिल सके।
3. बोकारो एयरपोर्ट का नामकरण:
कुड़मी समाज बोकारो एयरपोर्ट का नाम झारखंड आंदोलन के नेता बिनोद बिहारी महतो के नाम पर रखने की मांग कर रहा है। इसके समर्थन में बलियापुर से पदयात्रा निकाली जाएगी।
हालांकि कुड़मी समाज की इन मांगों का आदिवासी संगठनों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि कुड़मी को ST दर्जा देने से मूल आदिवासी समुदाय के आरक्षण और सरकारी योजनाओं पर असर पड़ेगा। इससे झारखंड समेत पूरे क्षेत्र में सामाजिक तनाव गहराने की आशंका है।
सरना धर्म कोड और कुड़मी आंदोलन ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन केंद्र पर आदिवासियों की धार्मिक पहचान मिटाने का आरोप लगा रहा है। वहीं कुड़मी आंदोलन भाजपा और केंद्र सरकार के लिए नई चुनौती बन सकता है।
कुड़मी समाज ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी मांगों को अनदेखा किया गया, तो वे भाजपा और उसके सहयोगी दलों का खुला विरोध करेंगे।