New Delhi : सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को राष्ट्रपति के रेफरेंस पर अपना फैसला सुनाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोर्ट से पूछा है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पास किए गए बिलों पर कार्रवाई करने के लिए गवर्नर पर कोई समय सीमा तय की जा सकती है, जब संविधान में इसकी कोई तय टाइमलाइन न हो।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच ने 11 सितंबर को केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों की ओर से 10 दिनों तक सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले की शुरुआत तमिलनाडु बिल विवाद से हुई थी। अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए तमिलनाडु में 10 बिलों को मंजूरी देने में गवर्नर के देरी करने को गैर-कानूनी बताया था। कोर्ट ने विधानसभा द्वारा पास किए गए बिलों को राष्ट्रपति और गवर्नर के सामने मंजूरी देने के लिए तीन महीने की डेडलाइन तय की थी।

अब राष्ट्रपति ने आर्टिकल 143 के तहत कोर्ट से पूछा है कि गवर्नर के पास बिल पेश होने पर उनके सभी विकल्प इस्तेमाल करते समय उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह माननी जरूरी है या नहीं। साथ ही यह भी पूछा गया है कि क्या गवर्नर संवैधानिक विवेक का इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि आर्टिकल 361 के तहत उनके कामों पर ज्यूडिशियल रिव्यू नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संवैधानिक मामलों और राष्ट्रपति की एडवाइजरी शक्तियों के लिए अहम माना जा रहा है।

