Johar Live Desk : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो समुद्र से डेटा इकट्ठा करने के तरीके को बदल सकती है। इस तकनीक का नाम ‘बोट-बेस्ड रियल-टाइम टोड प्रोफाइलिंग ओशन ऑब्जर्वेशन सिस्टम’ है। यह मछुआरों की साधारण नावों से समुद्र की गहराई का डेटा जुटा सकती है, जिससे समुद्र की सेहत, जलवायु परिवर्तन और बारिश की भविष्यवाणी जैसे मुद्दों को समझने में मदद मिलेगी।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
इस सिस्टम के जरिए मछुआरों की नावों से समुद्र की तलहटी से 350 किलोमीटर तक डेटा इकट्ठा किया जा सकता है। पहले इसके लिए बड़े शोध जहाजों या स्थिर उपकरणों की जरूरत पड़ती थी, लेकिन यह नई तकनीक कम लागत में तटीय क्षेत्रों और नदियों के मुहाने से उच्च गुणवत्ता वाला डेटा जुटा सकती है।
क्या हैं फायदे?
NIOT के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने बताया कि इस स्वदेशी तकनीक से मछुआरों की नावों से रियल-टाइम डेटा मिलेगा, जिसका उपयोग जलवायु और बारिश की भविष्यवाणी में होगा। इस सिस्टम का बंगाल की खाड़ी के एननोर तट पर सफल परीक्षण हो चुका है। यह 10 से 100 मीटर की गहराई तक समुद्र में मौजूद खनिजों और जलवायु की जानकारी देता है।
यह तकनीक बारिश के मौसम में समुद्र की लवणता (नमक की मात्रा) में बदलाव, समुद्री जीवों की स्थिति और समुद्र में कचरे की मात्रा का पता लगाने में मदद करती है। मछुआरों को इससे मछली पकड़ने के बेहतर क्षेत्रों की जानकारी मिलेगी और प्रदूषण का स्तर भी पता चलेगा। कम लागत और आसान उपयोग के कारण छोटे मछुआरों को भी इसका लाभ मिलेगा।
वैज्ञानिकों का क्या कहना है?
इस उपकरण को विकसित करने वाले वैज्ञानिक एस. मुथुकुमारवेल ने बताया, “यह पूरी तरह स्वचालित उपकरण है, जिसे नाव पर लगाकर रियल-टाइम डेटा लिया जा सकता है। यह जलवायु परिवर्तन, समुद्री जीवों के पर्यावरण और कचरे के प्रभाव को समझने में मदद करता है।” उन्होंने कहा कि यह उपकरण समुद्र में बिना जमीन छूए डेटा जुटाता है और बार-बार उपयोग के लिए उपयुक्त है।
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