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    Home»जोहार ब्रेकिंग»रांची: देश का इकलौता मंदिर जहां फहराया जाता है तिरंगा, 15 अगस्त 1947 से चल रही परंपरा
    जोहार ब्रेकिंग

    रांची: देश का इकलौता मंदिर जहां फहराया जाता है तिरंगा, 15 अगस्त 1947 से चल रही परंपरा

    Team JoharBy Team JoharAugust 11, 2020No Comments3 Mins Read
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    Joharlive Team

    रांची। झारखंड की राजधानी रांची के बीचोंबीच स्थित ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर 24 एकड़ में फैला हुआ है। भगवान शिव का यह प्राचीनतम मंदिर कई ऐतिहासिक तथ्यों को संजोए हुए है। यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ देशभक्तों के बलिदान के लिए भी जाना जाता है। यह देश का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है यह परंपरा 15 अगस्त 1947 से चली आ रही है।

    हालांकि, झारखंड में दुनिया का सबसे ऊंचा तिरंगा लहराने की प्रयास किए गए और वह भी पहाड़ी मंदिर के करीब. लेकिन कुछ तकनीकी गड़बड़ी की वजह से ये सपना पूरा नहीं हो सका। पहाड़ी मंदिर का पुराना नाम टीवी गुरु था, जो आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के वक्त फनसी टूंगरी में बदल गया।

    अंग्रेजी हुकूमत के समय देश भक्तों व क्रांतिकारियों को यहां फांसी दी जाती थी. फांसी के बाद सबको हरमू नदी ले जाया जाता था। आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा झंडा इसी पहाड़ी मंदिर रांची के ही स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने फहराया था। उसी समय से हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां तिरंगा फहराया जाता है।

    चार वर्ष पहले पहाड़ी मंदिर पर 493 फीट ऊंचे फ्लैग पोल स्थापित किया गया, जिस पर 23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर 30. 17 मीटर लंबे और 20.12 मीटर चौड़ा तिरंगा झंडा फहराया गया था। तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने पहाड़ी मंदिर के नीचे बने समारोह स्थल से बटन दबाकर तिरंगा फहराया था।

    भूगर्भ शास्त्री नीतिश प्रियदर्शी की मानें तो, ये पहाड़ी हिमालय से भी पुराना है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है। यह पहाड़ी करोड़ों वर्ष पुरानी है। शायद विश्व के प्राचीनतम पहाड़ियों में से एक है। अनंत काल से छोटा नागपुर में होने वाले भूगर्भीक बदलाव का अकेला सबसे बड़ा और पुराना गवाह है। यह पहाड़ी मुख्यत कायांतरित शैल चट्टानों से निर्मित है। धारवाड़ कालका है जिसका आयु लगभग 35 सौ मिलियन वर्ष है, इसे खोंडालाइट के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें किसी भी तरह के भारी निर्माण कार्य मना है। यह पहाड़ मिट्टी वाला पहाड़ है और तीखा ढाल भी है। कहीं-कहीं पत्थर है पर वह भी और अपरदित हो चुका है। रांची पहाड़ी में निर्माण कार्य खतरनाक है।

    हालांकि, इसे कुदरत का करिश्मा ही कह सकते हैं कि, इस लॉकडाउन (Lockdown) के अवधि में पहाड़ी मंदिर का पूरा क्षेत्र पहली बार हरा भरा दिख रहा है. प्रत्येक वर्ष गर्मी के समय में पहाड़ी के ऊपर आग लग जाता था, जिससे नए पेड़ पौधे जल जाते थे और मिट्टी ऊपरी हिस्से के कमजोर पड़ जाते थे, जो कि बारिश में बह जाते थे.

    मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व सदस्यों की मानें तो, देश के नाम को ऊंचा करने के लिए यह हरवरी में उठाया गया एक बड़ा फैसला था. यहां फ्लैग पोल लगाने से, पहाड़ी को काफी नुकसान पहुंचा है. लेकिन अब इसे कहीं और शिफ्ट भी नहीं किया जा सकता. अब जरूरत है तो इसमें तकनीक लगाकर इसके हाइट को कम कर मूवमेंट करने वाला एक सिस्टम लगाया जाए. ताकि उस में तिरंगा लहरा सकें. क्योंकि हवा इतनी तेज ऊपर रहती है कि, वहां कोई भी तिरंगा टिक नहीं पाता है. साथ ही, पहाड़ी पर बाहर से लाकर मिट्टी देने की भी जरूरत है. हम सरकार से मांग करते हैं कि, शहर के अन्य हिस्सों में चल रहे निर्माण कार्य के दौरान जो मिट्टी निकल रहे हैं, उसे पहाड़ी मंदिर के विभिन्न क्षेत्रों में दिया जाए और वृक्षारोपण भी किया जाए, ताकि पहाड़ का आयु बढ़ सके और पहाड़ी मंदिर भी सुरक्षित रह सके.

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