Buxar : बक्सर जिले के नरबतपुर गांव ने अपने वीर सपूत सुनील सिंह यादव को नम आंखों और गर्व के साथ अंतिम विदाई दी। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन हमले में जख्मी हुए सुनील सिंह ने उधमपुर सैन्य अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। रविवार को रानी घाट पर पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहां गम और देशभक्ति का माहौल छाया रहा।
शहीद की अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब
जब हवलदार सुनील सिंह का पार्थिव शरीर उनके गांव लाया गया, तो वातावरण ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम्’ और ‘शहीद सुनील अमर रहें’ के नारों से गूंज उठा। गांव से करीब आठ किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा निकाली गई, जिसमें सैकड़ों लोग बाइक और पैदल शामिल हुए। तिरंगे को हाथों में थामे, लोग गर्व और दुख की मिश्रित भावनाओं के साथ शहीद की अंतिम यात्रा में शरीक हुए।
क्षेत्र में शोक की लहर
पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए उनके घर के बाहर रखा गया, जहां उनकी पत्नी बेसुध होकर रो पड़ीं। पिता की आंखों से आंसुओं का सैलाब था, लेकिन बेटे की शहादत पर गर्व भी झलक रहा था। नरबतपुर और आसपास के दर्जनों गांवों से लोग उन्हें अंतिम सलामी देने पहुंचे। पूरे क्षेत्र में शोक की लहर थी, लेकिन शहीद के प्रति सम्मान हर चेहरे पर दिखाई दे रहा था।
बेटे और पिता का सैल्यूट
हवलदार सुनील सिंह यादव को उनके 14 वर्षीय बेटे सौरभ यादव ने रानी घाट पर मुखाग्नि दी। इस दृश्य ने सभी की आंखें नम कर दीं। मुखाग्नि के बाद सौरभ और उनके बुजुर्ग पिता ने शहीद को सैल्यूट किया। यह क्षण न केवल एक परिवार की विदाई था, बल्कि एक राष्ट्र के वीर सपूत को सम्मान देने का प्रतीक था। इस दौरान सेना के जवान, जिला प्रशासन के अधिकारी, स्थानीय नेता और बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे।
नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
शहीद का पार्थिव शरीर एक दिन पहले उधमपुर से सैन्य सम्मान के साथ दिल्ली और फिर पटना लाया गया था। पटना हवाई अड्डे पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित कई वरिष्ठ नेताओं और अधिकारियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
27 दिन का संघर्ष
हवलदार सुनील सिंह यादव 9 मई को कश्मीर के राजौरी में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तानी ड्रोन हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। प्राथमिक उपचार के बाद उनकी हालत बिगड़ती गई, जिसके बाद 15 मई को उन्हें एयरलिफ्ट कर उधमपुर सैन्य अस्पताल में भर्ती किया गया। 27 दिनों तक इलाज के दौरान उन्होंने वीरता से जूझते हुए 5 जून को अंतिम सांस ली। उनके फौजी भाई ने बताया कि वेंटिलेटर पर रहते हुए भी वे मुस्कुराते थे और कहते थे, “टेंशन मत लो।”
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