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    Home»ट्रेंडिंग»सामाजिक न्याय के पुरोधा थे डॉ. भीमराव आम्बेडकर
    ट्रेंडिंग

    सामाजिक न्याय के पुरोधा थे डॉ. भीमराव आम्बेडकर

    Kajal KumariBy Kajal KumariApril 14, 2025No Comments5 Mins Read
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    भीमराव
    डॉ. भीमराव आम्बेडकर
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    Johar Live Desk : आज पूरा देश भारत रत्न डॉ. भीमराव आम्बेडकर की 134वीं जयंती मना रहा है. सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के पक्षधर डॉ. आम्बेडकर ने भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिवाद और लैंगिक भेदभाव जैसी कुरीतियों के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया. डॉ. आम्बेडकर देश के पहले नायक थे, जिन्हें अपने लोगों के बीच स्थापित होने में किसी प्रकार की प्रचार की आवश्यकता नहीं पड़ी. उनको लोगों ने खुद चुना, वे दार्शनिक की तरह अपने विचार रखते गए और उनके अनुयायी अनुसरण करते हुए उनके पीछे चल दिए. उनके विचारों से लोगों के जीवन में बदलाव आया और उन्होंने समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इसी प्रकार डॉ. आम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल विवाद होने के बाद अपना इस्तीफा दे दिया था. हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को अधिकार प्रदान किए गए. जिससे हिन्दू समाज के कुछ मठाधीश नाराज हो गए. हिन्दू कोड बिल सही अर्थों में महिलाओं को आजादी देने वाला कानून था.

    उन्होंने लक्ष्य रखा था कि हिन्दू समाज में फैली अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों को समाप्त कर नए मानवीय समाज की स्थापना की जाए. इसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के दर्द को अच्छी तरीके से समझ पाएगा. जाति व्यवस्था केवल पृथक-पृथक असमान समूहों का ही संगठन नहीं है, अपितु इसका सबसे दूषित तथा कलंकित रूप अस्पृश्यता के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है. इसका विश्व में कहीं कोई सादृश्य नहीं मिलता. इन समुदायों की इस अपवित्रता का कोई उपचार नहीं है और यह स्थाई है. डॉ. आम्बेडकर का मानना था कि अछूतों के स्पर्श से अपवित्र होने पर सवर्ण हिन्दू पवित्रकारी रस्मों या नुस्खों से पवित्र हो सकते हैं, लेकिन ऐसे किसी सेभी प्रकार के नुस्खे से अछूतों को पवित्र नहीं किया जा सकता ? इस मान्यता के अनुसार अस्पृश्य अपवित्र ही जन्म लेता है, आजीवन अपवित्र रहते हैं, अपवित्र ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं. यह स्थाई और वंशानुगत कलंक का मुद्दा है, जिसे कोई चीज मिटा नहीं सकती. हिन्दू दर्शन की सर्वश्रेष्ठता को डॉ. अम्बेडकर ने स्वीकारते हुए कहा था कि इतने अच्छे दर्शन में मनुष्य-मनुष्य को स्पर्श नहीं करे, यह विचार कहां से आ गया? जो हिन्दू प्राणीमात्र में ब्रह्म(ईश्वर) का अंश देखता है, वह अपने बंधुता के लिए ही अस्पृष्य क्यों हो गया? यह प्रश्न बार-बार उनके मन में आता था. वर्ष 1928 में शासकीय विधि महाविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त होने के बाद डॉ. आम्बेडकर ने कहा था कि भारतीयता के विरोधक, गो-मांस भक्षक, रामकृष्ण एवं शिव की मूर्तियों के भंजक मोहम्मद, मार्टिन, मुसलमानों और ईसाइयों को जब छुआ जा सकता है तो हिन्दू समाज का ही अपना अंग समझा जाने वाला माधव, जो गौ, गंगा, कृष्ण और शिव की उपासना करता है, वह अछूत क्यों ? अस्पृश्यता का यह कलंक क्यों?

    डॉ. आम्बेडकर का मत था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है और इसके लिए उन्होंने ने मुंबई में ‘समाज समता संघ’ की स्थापना की, जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना था. अछूतों को अपने अधिकारों के प्रति सचेत कर आत्माविश्वास का जागरण करना था. यह संघ बड़ा ही सक्रिय था. इसी समाज के तत्वावधान में 500 महारों को जनेऊ धारण करवाया गया, ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके. यह सभा मुंबई में मार्च, 1928 में संपन्न हुई, जिसमें डॉ. आम्बेडकर भी मौजूद थे.

    डॉ. आम्बेडकर के विचार से जाति व्यवस्था ने हिन्दू समाज को कमजोर किया है. जाति की वजह से हिन्दू समाज में सामुदायिक जीवन पद्धति का लोप हो गया. पृथक-पृथक जातियों की जीवन पद्धति में भिन्नता ने हिन्दू समाज में भाईचारे, सहयोग और संगठन की भावना को कमजोर किया है. इससे हिन्दुओं में असुरक्षा, भीरूता, कायरता, अलगाव और एकाकीपन की भावना का विकास हुआ. डॉ. आम्बेडकर के अनुसार, जब तक हिन्दू समाज में जातियां विद्यमान हैं, हिन्दूकरण का कोई अर्थ नहीं होगा. हिन्दू संगठित नहीं हो सकते और जब तक हिन्दुओं में संगठन का अभाव रहेगा, वे कमजोर और निरीह बने रहेंगे. उन्हें दूसरों से अपमान, अत्याचार और अन्याय को विवश होकर सहना पड़ेगा. वह कहा करते थे कि जाति व्यवस्था ने हिन्दू समाज को रूग्ण, निर्जीव व अनैतिक बना दिया है. जाति के कारण ही हिन्दुओं का जीवन निरंतर पराभव का जीवन रहा है.

    डॉ. आम्बेडकर जीवन भर गौतम बुद्ध, संत कबीर और ज्योतिबा फुले के जीवन से प्रभावित रहे. उनके बताए गए सिद्धांतों का पालना किया. गौतम बुद्ध के चिंतन से उन्हें वेदों और स्मृतियों में प्रतिपादित वर्ण व्यवस्था और सामाजिक असमानता के विरूद्ध विद्रोह का दर्शन प्राप्त हुआ. उन पर यह बुद्ध का ही प्रभाव था कि वे कार्ल मार्क्स के भौतिकवाद और आर्थिक नियतिवाद के समर्थक नहीं बन सकें. कबीर का प्रभाव उन पर यह पड़ा कि उन्होंने सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति पूजा, धार्मिक अन्ध-विश्वासों और कर्मकांडों का घोर विरोध किया और सामाजिक समानता के पक्षधर बने. प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिबा फुले से प्रभावित होकर उन्होंने मनुस्मृति की कठोर आलोचना की, स्त्रियों और शूद्रों की अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया. सवर्णों की ओर से किए जा रहे अन्याय के प्रति हिन्दुओं के दलित वर्ग को जागरुक बनाया और सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय पर विशेष बल दिया. डॉ. अम्बेडकर अत्यंत प्रतिभाशाली होने के कारण उन्होंने अर्थशास्त्र , न्यायशास्त्र आदि का गहरा अध्ययन किया था. डॉक्टर आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रेल,1891 को हुआ था. बहरहाल, यहीं कहा जा सकता है कि उनके अनुयायी आज भी सामाजिक न्याय की लड़ाई में जुटे हुए हैं.

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